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________________ आध्यात्मिक श्वासोच्छवास में ले जाता है, उसे अपूर्व शक्ति और अद्भुत सुख की प्राप्ति होती है। प्राणी किसी भी योनि में क्यों न हो? उसे श्वासोच्छवास अवश्य लेना पड़ता है। यह शरीर श्वासोच्छवास की क्रिया पर ही टिका हुआ है। श्वासोच्छवास की क्रिया बंद हो जाने पर शरीर भी नहीं रहता। गौतम स्वामी ने भगवान् से नारकी जीवों के श्वासच्छवास के संबंध में प्रश्न किया है। प्रश्न के उत्तर में पण्णवण्णा सूत्र का हवाला दे दिया गया है। मगर टीकाकार ने संक्षेप रूप से यह बतला दिया है कि पण्णवण्णा सूत्र में प्रस्तुत विषय में क्या वर्णन किया गया है। उस सूत्र में भगवान् ने कहा कि नारकी जीव सतत श्वासोच्छवास लेते रहते हैं। जो अधिक दुःखी होता है, उसे अधिक श्वास आता है। श्वास ज्यादा आने लगा कि दुःख की मात्रा बढ़ी, श्वास अधिक आने पर कैसी घबराहट होती है? यह हम लोग संसार में देख सकते हैं। श्वास की बीमारी में जिसे श्वास चलता हो उससे पूछो। वह अपने दुःख का वर्णन नहीं कर सकेगा। निरन्तर श्वासोच्छवास क्यों आता है? इसलिए कि जीव अति दुःखी प्रश्न हो सकता है कि सतत कहने से ही निरन्तर ही प्रतीति हो गई थी, फिर 'संतत' पद क्यों कहा है? पण्ण्वणा सूत्र का पाठ इस प्रकार है:'गोयमा! सययं संतयामेव आणभंति वा, पाणमंति वा ऊससंति वा, नीससंति वा।' इसका उत्तर यह है कि अकेला सतत कहने से कुछ कमी रह जाती है, अतएव संतत पद और कहा है। उदाहरण के लिए- लोक में मनुष्य कहते हैं कि हम निरंतर भोजन करते हैं। यहां निरंतर पद का प्रयोग करने पर भी कोई मनुष्य प्रतिक्षण सदा नहीं खाता रहता। बीच में काफी समय रहता ही है। फिर भी रोज-रोज भोजन करने को निरन्तर भोजन करना कह दिया जाता है। यहां श्वासोच्छवास के विषय में ऐसा न समझा जाये, इस अभिप्राय से सतत और संतत-दो निरंतरता वाचक शब्दों का प्रयोग किया गया है। इन दो शब्दों के प्रयोग से यह सूचित हो गया कि बीच में समय खाली नहीं रहता-नारकी जीवों की श्वासोच्छवास-क्रिया सदा-सर्वदा प्रतिक्षण चालू रहती है। आंख बन्द करके खोलने में भी असंख्य समय लगते हैं। इस समय में भी नरक के जीवों का श्वासोच्छवास बराबर जारी रहता है। वह किसी भी समय बंद नहीं होता। २३२ श्री जवाहर किरणावली -
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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