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________________ उन्हें 'व्याख्या' कहते हैं और उनका जहां निरूपण किया गया है वह 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' सूत्र कहलाता है। ___अथवा अर्थ का प्रतिपादन 'व्याख्या' कही जाती है। उस व्याख्या का अर्थात् पदार्थ के प्ररूपण का जिसमें प्रकृष्ट (श्रेष्ठ) ज्ञान दिया गया है वह व्याख्या प्रज्ञप्ति सूत्र है। तात्पर्य यह है कि व्याख्या का अर्थ है-पदार्थ का कथन और प्रज्ञप्ति का अर्थ है-बोध । अर्थात् जहां पदार्थ के कथन का बोध कराया गया है, वह व्याख्या प्रज्ञप्ति है। अथवा जिस शास्त्र का विधिपूर्वक अध्ययन करने से नाना प्रकार की व्याख्या फैल जावे या व्याख्यान करने की शक्ति आ जाये, वह शास्त्र व्याख्या प्रज्ञप्ति कहलाता है। अथवा व्याख्या करने में अत्यन्त प्राज्ञ-कुशल भगवान् महावीर से जिसकी प्रज्ञप्ति हुई है-बोध हुआ है वह सूत्र विआहपण्णत्ति (व्याख्या प्रज्ञप्ति) कहलाता है। ___ अथवा-विवाह अर्थात् विविध प्रकार या विशिष्ट प्रकार अर्थों का प्रवाह नयों का प्रवाह जिस शास्त्र में प्ररूपण किया गया है वह विवाहपण्णत्ति' सूत्र है। तात्पर्य यह है कि भगवती सूत्र में कहीं अर्थों का प्रवाह चलता है, कहीं नयों का प्रवाह चलता है। नयों की थोड़ी व्याख्या में ही 700 न हो जाते हैं और आचार्यों ने अनन्त नयों का अस्तित्व माना है। इस नयप्रवाह की व्याख्या जिस सूत्र में हो उसका नाम विवाहपन्नति है। __ अथवा-'विवाह' शब्द का अर्थ होता है विस्तारमय अथवा बाधारहित-विवाध । इस प्रकार की प्रज्ञा की जिस शास्त्र से प्राप्ति होती है, वह विवाहपण्णत्ति है। अर्थात् भगवतीसूत्र का अध्ययन, चिन्तन, मनन करने से विस्तृत बोध प्राप्त होता है और विवाध-निर्दोष बोध की प्राप्ति होती है उसे भी विवाहपण्णत्ति (विवाहप्रज्ञप्ति) कहते हैं। अथवा-विवाध या विवाह अर्थात् बाधा रहित जो प्रज्ञप्ति है वह विवाह प्रज्ञप्ति या विवाध प्रज्ञप्ति है। तात्पर्य यह है कि जिस शास्त्र में की गई अर्थ-प्ररूपणा में किसी प्रकार की बाधा न आ सके वह शास्त्र विवाहप्रज्ञप्ति या 'विवाधप्रज्ञप्ति' कहलाता है। ___टीकाकार ने थोड़ा-थोड़ा रूपान्तर करके 'विआहपण्णति सूत्र के दस नाम गिनाये हैं। अन्त में कहा है कि इसका जमत् प्रसिद्ध नाम 'भगवतीसूत्र' है। यह नाम इस सूत्र की महत्ता-पूज्यता-का द्योतक है। यों सामान्य रूप - श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १३
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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