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________________ का उतना महत्व न समझ पाये, लेकिन सच्चा तत्व-जिज्ञासु इन वचनों को अमृत समझता है और इनका पान करके अपने आपको कृतार्थ समझता है। एक जगह किसी कवि ने कहा है ते न यहां नागर बड़े, जिन्ह नयननि तव आब। फूल्यो अनफूल्यो रह्यो, गँवई गाँव गुलाब ।। ___ आज श्रेणिक, कामदेव और आनन्द जैसे जिज्ञासु श्रोता नहीं रहे इसी कारण इन वचनों का सम्मान कम है। यह लोग साधु तो क्या श्रावक से भी इन वचनों को सुनकर आनन्द की हिलोरों में उतराने लगते थे। यह लोग गुलाब के पानी की चाह करने वाले नागरिकों के समान थे। जो गँवार हैं उन्हें गुलाब की कद्र का क्या पता? वे उसे कटीला वृक्ष समझकर काट फेंकेंगे। __तात्पर्य यह है कि गौतम स्वामी जानते हुए भी अनजानों की वकालत करने के लिए अपने ज्ञान में विशदता लाने के लिए, शिष्यों को ज्ञान देने के लिए और अपने वचन में प्रतीति उत्पन्न करने के लिए यह सब प्रश्न कर सकते हैं। अपने वचन में प्रतीति उत्पन्न करने का अर्थ यह है कि मान लीजिए किसी महात्मा ने किसी जिज्ञासु को किसी प्रश्न का उत्तर दिया। लेकिन उस जिज्ञासु को यह संदेह उत्पन्न हुआ कि इस विषय में भगवान न मालूम क्या कहते? उसने जाकर भगवान से वही प्रश्न पूछा। भगवान ने वही उत्तर दिया। श्रोता को उन महात्मा के वचनों पर प्रतीति हुई। इस प्रकार अपने वचनों की दूसरों को प्रतीति कराने के लिए भी स्वयं प्रश्न किया जा सकता है। इसके सिवाय सूत्र-रचना का क्रम गुरु-शिष्य के संवाद में होता है। अगर शिष्य नहीं होता तो गुरु स्वयं शिष्य बनता है इस तरह सुधर्मा स्वामी इस प्रणाली के अनुसार भी गौतम स्वामी और भगवान महावीर से प्रश्नोत्तर करा सकते हैं। यद्यपि निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि गौतम स्वामी ने उक्त कारणों में से किस कारण से प्रेरित होकर प्रश्न किये थे, तथापि यह निश्चित है इन प्रश्नों के संबंध में उक्त तर्क को स्थान नहीं है। तर्क निर्मूल है। भगवान ने उत्तर में जो 'हन्ता' शब्द कहा है, उसका अर्थ आमंत्रण या संबोधन करना है और 'हाँ' भी है। प्रश्न-'हंता गोयमा!' इतना कहनेसे ही गौतम स्वामी के प्रश्नों का उत्तर हो जाता है। फिर भगवान ने 'चलमाणे चलिए, जाव णिज्जरिज्जमाणे णिज्जिण्णे' इतने शब्द क्यों कहे हैं? - श्री भगवती सूत्र व्याख्यान २०७
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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