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________________ केशी श्र.- लेकिन उस उद्यान में एक पारधी धनुष चढ़ाकर पक्षियों को मार डालने के लिए उद्यत खड़ा है। ऐसी दशा में वहां कोई पक्षी जायेगा? चित्त- अपने प्राण गँवाने कौन जायेगा? के.श्र.-इसी प्रकार सिताम्बिका नगरी उद्यान की भाँति सुन्दर है, किन्तु वहाँ का राजा प्रदेशी हम साधुओं के लिए पारधी के समान है। वह साधुओं के प्राण लिए बिना नहीं मानता। वह अपने अज्ञान से साधुओं को अनर्थ-की जड़ समझता है। ऐसी दशा में तुम्हीं बताओ, हमारा वहाँ जाना उचित होगा? चित-भगवन आपको राजा से क्या प्रयोजन? उपदेश तो वहाँ की जनता सुनेगी। चित की बात सुनकर केशी श्रमण ने सोचा-आखिर चित वहाँ का प्रधान है। इसका आग्रह है तो जाने में क्या हानि है? सम्भव है राजा भी सधर जाय। परीषह और उपसर्ग आएंगे तो हमारा लाभ ही होगा-कर्मों की विशेष निर्जरा होगी। इस प्रकार विचार कर केशी श्रमण ने सिताम्बिका जाने की स्वीकृति दे दी और वहाँ पधार भी गये। चित प्रधान घोड़े फिराने के बहाने प्रदेशी राजा को उनके पास ले आया। केशी श्रमण ने राजा को उपदेश दिया। उपदेश से प्रभावित हो राजा ने श्रावक के बारह व्रत धारण किये। जब राजा जाने लगा तो केशी स्वामी ने उससे कहा-राजन्! अब तुम रमणीक हुए हो; मगर हमारे चले जाने पर फिर अरमणीक न बन जाना। राजा ने उत्तर दिया-नहीं महाराज! मेरे नेत्र आपने खोल दिये हैं। अब देखते हुए गड्ढे में नहीं गिरूँगा। बल्कि अपने राज्य के सात हजार ग्रामों के चार भाग आपके सामने ही किये देता हूँ। एक हिस्सा राज्य भंडार के लिये, दूसरा अन्तःपुर के लिये, तीसरा राज्य की रक्षा के लिए और चौथे हिस्से से श्रमणों-माहणों के लिए एवं भिखारियों के लिए देता हुआ तथा अपने व्रतों का पालन करता हुआ विचरूँगा। मित्रों! राजा प्रदेशी एक दिन दूसरो के हाथ का ग्रास छीन लेता था। अब छीनता नहीं वरन् देता है। क्या उसके यह दोनों कार्य बराबर हैं? अगर कोई जैनदर्शन के नाम पर इन दोनों कार्यों को समान बतलाकर एकान्त पाप कहता है तो उसे क्या कहना चाहिए? तात्पर्य यह है कि राजा प्रदेशी ने घोर पाप करके कर्मों का बंध किया था। कथा में उल्लेख है कि उसने बेले बेले का पारणा किया और १६६ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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