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________________ कर्मबंध नहीं रहता । कर्मबंध के नष्ट होने में पहला क्रम 'चलमाणे चलिए' ही है। इसी कारण यह प्रश्न सब से पहले उपस्थित किया गया है। अब यह देखना चाहिए कि कर्मबंध के नाश का यह क्रम दिखाकर कौन-सी बात समझाई गई है, और इन पदों का अर्थ क्या है? सब से पहले 'चलमाणे चलिए' इस प्रश्न पर विचार करना चाहिए । I कर्म की स्थिति पूर्ण होने पर कर्म उदयावलिका में आतें हैं, आवलिका कहते हैं - चक्कर को । स्थिति पूर्ण होने पर कर्म अपना फल देने के लिए जिस चक्कर में आते हैं, उसे उदय-आवलिका कहते हैं । इस प्रकार कर्म का फल देने लिए सामने आना ही चलित होना है। उदय-आवलिका का शास्त्र में बहुत विस्तार पूर्वक वर्णन है, जिसे कहने का अभी समय नहीं है । कर्मों को उदय - आवलिका में आने में असंख्यात समय लगते हैं, असंख्यात समय में कर्म उदय - आवलिका में आते हैं। जो समय असंख्यात है उनकी आदि भी है, मध्य भी है और अन्त भी है। असंख्यात में आदि, मध्य और अन्त होता ही है। कर्म-पुद्गल अनन्त हैं और उनके उदय - आवलिका में आने का क्रम है। इस समय में अनन्त पुद्गलों का कितना दल चले, दूसरे समय में कितना चले और तीसरे समय में कितना दल चले, आदि? इस प्रकार क्रमपूर्वक कर्मपुद्गल उदयावलिका में आते हैं । अतः क्रम से चलते-चलते कर्मपुद्गलों को उदयावलिका में आने में असंख्यात समय लग जाते हैं । चलमाणे चलिए जो चलता है वह चला । - इस सिद्धान्त के अनुसार पहले समय में कर्मपुद्गलों का जो दल चला है, उसे दृष्टि में रखकर आगे के असंख्यात समयों में जो दल चलेगा। उसके लिए भी 'चला' कहा जायगा । अर्थात पहले समय में जो कर्मपुद्गलों का दल चला है, उसे लक्ष्य करके कर्मपुद्गलों के सब दलों के लिए कहना चाहिए कि वे सब 'चले हैं' । अब प्रश्न यह है कि जो कर्मपुद्गल चल रहे हैं, वे वर्तमान में हैं, उन्हें 'चले' इस प्रकार भूतकाल में क्यों कहा? वर्तमान को भूतकाल में क्यों कहा? इस शंका का समाधान युक्ति से किया जाता है। शास्त्रकार का कथन है कि ऐसा न मानने से सारा व्यवहार ही बिगड़ जायेगा, और जब व्यवहार बिगड़ जायेगा तो आत्मिक क्रिया भी नष्ट होगी ही। कल्पना कीजिए एक आदमी कपड़ा बुन रहा है। कपड़ा बुनने में अनेक तार डालने पडेंगे। तभी कपड़ा पूरा बुना जायेगा। इस प्रकार कपड़ा बुनने में असंख्यात श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १८६
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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