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________________ का कुछ नहीं बिगाड़ सकते। कदाचित् तुम्हारे सामने ऐसा मौका आवे भी तो कम से कम इतना करो कि दूसरे का हक छीनने के लिए उसका दिल न दुःखाओ। अपने हक का लेने में दूसरे का दिल दुःखाना उतना पाप नहीं है, जितना पाप दूसरे का हक छीनने के लिए दिल दुःखाने में है। अधिकांश लोग एक दूसरे का हक छीनने के लिए उसका दिल दुःखाते हैं। दूसरे का हक हड़प जाना और दूसरे का हक देना नहीं, यह भावना संसार में फैल रही है, इसी कारण संसार अशान्ति का अड्डा बना हुआ है। __ मित्रों! अपने जीवन को उन्नत बनाना हो तो गौतम स्वामी के गुणों का चिन्तन-मनन करके उन्हें अपने जीवन में अधिक से अधिक मात्रा में चरितार्थ करने की चेष्टा करो। इसी में आपका कल्याण है। प्रश्नोत्थान। __ मूल-तए णं से भगवं गीयमे जायसड्ढे जायसंसए, जायकोऊहल्ले, उप्पणसड्ढे, उप्पण्णसंसए, उप्पण्ण्कोऊहल्ले; संजासयड्ढे, संजायसंसए, संजायकोऊहल्ले; समुप्पण्णसड्ढे, समुप्पण्ण्संसए, समुप्पण्ण्कोऊहल्ले उढाए उद्वेइ। उट्ठाए उदिता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, वंदइ, नमसई। नमंसित्ता पच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे, नमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिऊडे पज्जुवासमाणे एवं व्यासी।(3) संस्कृत-छाया-तदा स भगवान् गौतमो जातश्रद्धः, जातसंशयः, जातकुतूहलः, उत्पन्नश्रद्धः, उत्पन्नसंशयः, उत्पन्नकुतूहलः, संजातश्रद्धः, संजातसंशयः, संजातकुतूहलः, समुत्पन्नश्रद्धः, समुत्पन्नसंशयः, समुत्पन्नकुतूहलः, उत्थया उत्तिष्ठति। उत्थया उत्थाय येनैव श्रमणो भगवान् महावीरस्तेनैव उपगच्छति, उपागम्य श्रमणं भगवन्तं महावीर त्रिकृत्वः, आदक्षिणप्रदक्षिणं करोति, कृत्वा वन्दते, नमस्यति, नमस्ययित्वा नात्यासन्नः, नातिदूरः, शुश्रूषमाणः, नमस्यन् अभिमुखो विनयेन कृतप्राञ्जलीः पर्युपासीन एवमवादीत्। (3) मूलार्थ-तत्पश्चात् जातश्रद्ध-प्रवृत्त हुई श्रद्धा वाले, जातसंशय, जातकुतूहल, संजातश्रद्ध, संजातसंशय, संजातकुतूहल, समुत्पन्न श्रद्धा वाले समुत्पन्न संशय वाले, समुत्पन्न कुतूहल वाले भगवान् गौतम उत्थान से उठते हैं। उत्थान से उठकर जिस ओर श्रमण भगवान महावीर हैं उस ओर आते हैं। आ करके श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार दक्षिण दिशा से प्रारम्भ करके प्रदक्षिणा करते है, प्रदक्षिणा करके वंदन करते हैं, नमस्कार करते हैं। नमस्कार -श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १६७
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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