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________________ भगवान 'इद्ध' हैं। अनन्त ज्ञान - लक्ष्मी से देदीप्यमान है अथवा तप-तेज से अथवा शरीर की उस कान्ति से, जिसे देख कर देव भी चकित रह जाते हैं, देदीप्यमान हैं। ऐसे भगवान् जिनेन्द्र को मैं नमस्कार करता हूं। जिनेन्द्र भगवान् 'सिद्ध' हैं। प्रश्न हो सकता है कि जिन्होंने सिद्धि-मुक्ति प्राप्त कर ली है उन्हें सिद्ध कहते हैं। अगर जिनेन्द्र भगवान् सिद्ध हैं तो फिर 'सार्वीय' (सब के हित कर) कैसे हो सकते है। अरिहंत भगवान उपदेश देने के कारण सार्वीय हो सकते हैं पर सिद्ध भगवान जगत का कुछ भी कल्याण नहीं करते। उन्हें सार्वीय विशेषण क्यों दिया? अगर इस मंगलाचरण में अरिहंत भगवान को नमस्कार किया गया है तो 'सिद्ध' विशेषण क्यों दिया गया है ? इस प्रश्न का समाधान यह है कि तीन बातों से अर्थात् कष, छेद और ताप - इन बातों से जिनके सिद्धान्त का अर्थ सिद्ध है, जिनके सिद्धान्त सिद्धार्थ हैं, ऐसे द्वादशांगी रूप सिद्धान्त जिन भगवान् ने बताये हैं उन्हें सिद्ध आगम कहते हैं। इसके अतिरिक्त जिनके सब काम सिद्ध हो चुके हों-जो कृतकृत्य हो गये हों उन्हें भी सिद्ध कहते हैं तथा संसार के लिए जो मंगलरूप हों उन्हें भी सिद्ध कहते हैं। इन विवक्षाओं से यहां अरिहंत भगवान् को भी 'सिद्ध' विशेषण लगाना अनुचित नहीं है । अथवा इस मंगलाचरण में अरिहंत और सिद्ध दोनों परमेष्ठी को नमस्कार किया गया है। सिद्ध- नमस्कार के पक्ष में यह समझना चाहिए कि सिद्ध भगवान् आत्मविशुद्धि के आदर्श बनकर जगत् का कल्याण करते हैं, अतः वह सार्वीय हैं। भगवान् शिव हैं। उन्हें किसी प्रकार का रोग या उपद्रव नहीं है अतएव वह शिव स्वरूप हैं तथा उनका स्मरण और ध्यान करने से अन्य जीवों के रोग एवं उपद्रव मिट जाते हैं । इसलिए भी भगवान् शिव हैं। भगवान् 'करणव्यपेत' हैं अर्थात् शरीर और इन्द्रियों से रहित हैं। यहां फिर वही आशंका की जा सकती है कि अरिहन्त भगवान् शरीर सहित होते हैं और इन्द्रियां भी उनके विद्यमान रहती हैं, तब उन्हें 'करणव्यपेत' क्यों कहा गया है? इस प्रश्न का समाधान यह है कि यद्यपि अरिहंत भगवान् की इन्द्रियां विद्यमान रहती हैं फिर भी वह इन्द्रियों का उपयोग नहीं करते । अरिहंत भगवान् अपने परम प्रत्यक्ष केवल ज्ञान के द्वारा समस्त पदार्थों को जानते हैं उनकी इन्द्रियां निरुपयोगी हैं। जैसे सूर्य का पूर्ण प्रकाश फैल जाने पर कोई दीपक भले ही विद्यमान रहे फिर भी उसका कुछ उपयोग नहीं होता, सब लोग 1 श्री जवाहर किरणावली ४
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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