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________________ अभिलाषाओं का परित्याग करके केवल मोक्ष की ही अभिलाषा करें। जब तक कषाय का योग है तब तक आशा कामना बनी ही रहती है। इसलिए और आशा न करके केवल यही आशा करो। कहा भी हैमोक्षे भवे च सर्वत्र निस्पृहो मुनिसत्तमः । अर्थात्–उच्च अवस्था को प्राप्त मुनि - केवली क्या मोक्ष और क्या संसार सभी विषयों में निस्पृह ही होते हैं। और भी कहा हैयस्य मोक्षेऽप्यनाकांक्षा स मोक्षमधिगच्छति अर्थात्-जिस महापुरुष को मोक्ष की भी इच्छा नहीं रह जाती, जो पूर्ण रूप से निरीह बन जाता है, जिसका मोह समूल नष्ट हो जाता है, वही मोक्ष प्राप्त करता है - भगवान् के लिए जो विभिन्न विशेषण यहां दिये गये हैं, उनसे उनका अन्तरंग परिचय मिल जाता है । भगवान् की बाह्य विभूति का भी शास्त्र में वर्णन है। मस्तक से पैरों तक शरीर का अशोक, वृक्ष आदि आठ महाप्रातिहार्यों का, चौंतीस अतिशयों का, पैंतीस गुणों का। अतिशय सम्पदा और उपकार गुण का परिचय यहां संक्षेप से सुनाया जाता है । भगवान् के केश भुजमोचन रत्न के समान हैं अथवा नील, काजल या मतवाले भ्रमर के पंखों के समान कृष्णता लिए हुए हैं। वह केश वनस्पति के गुच्छे समान हैं और दक्षिण दिशा से चक्कर खाकर कुण्डलाकार हो गये हैं । केश का वर्णन करके टीकाकार ने पाठ को संकुचित कर दिया है और पदतल का वर्णन किया है । भगवान् के पदतल (पैरों के तलुवे ) रक्त वर्ण के कमल के समान कोमल और सुन्दर हैं। टीकाकार ने विस्तारभय से अन्य अवयवों का वर्णन न करके उववाई सूत्र का उल्लेख कर दिया है। तात्पर्य यह है कि उववाई सूत्र में भगवान् के अंगोपांगों का जो वर्णन पाया जाता है वही वर्णन यहां भी समझ लेना चाहिए। प्रधान पुरुष के शरीर में 1008 प्रशस्त लक्षण होते हैं । भगवान् के शरीर में वह सभी लक्षण विद्यमान हैं । भगवान् का धर्मचक्र, धर्मछत्र, चावर, स्फटिक रत्न के पादपीठ सहित सिंहासन आदि आकाश में चल रहे हैं । इस बाह्य और अंतरंग विभूति से विभूषित भगवान् महावीर चौदह हजार मुनियों और छत्तीस हजार आर्यिकाओं के परिवार से घिरे हुए हैं । यह आशंका की जा सकती है कि पचास हजार साधु-साध्वियों का परिवार भगवान् के साथ था या यहां परिवार की संख्या मात्र बताई गई है? श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १३३
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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