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________________ करोड़पति नहीं हो सकता। जो करोड़पति होगा उसका लखपति होना स्वयं सिद्ध है । फिर करोड़पति को लखपति बताने की क्या आवश्यकता है? इसी प्रकार जो बुद्ध और बोधक होगा वह ग्रंथि से मुक्त तो होगा ही। फिर उसे 'मुक्त' कहने की क्या आवश्यकता है? इस शंका का समाधान यह है कि बाल जीवों के भ्रम का निवारण करने के लिए भगवान् को यह विशेषण लगाया गया है। कुछ दार्शनिक कहते हैं कि जो भगवान् हैं उनके पास अगर धन भी हो, स्त्री आदि भी हो तो भी क्या हानि है? मगर यह उनका भ्रम है। जो बुद्ध होगा, बोधक होगा, उसे मुक्त पहले ही होना चाहिए। मुक्त होने से पहले कोई बुद्ध- - बोधक नहीं हो सकता । इस भाव को समझाने के लिए भगवान् को मुक्त विशेषण लगाया गया है। वही उपदेशक प्रभावशाली होता है जो स्वयं अपने उपदेश का आदर्श हो । जो पुरुष स्वयं ही अपने उपदेश के अनुसार नहीं चलता, उसका उपदेश प्रभावजनक नहीं हो सकता। नीतिकार ने कहा है परोपदेशे पाण्डित्यं सर्वेषां सुकरं नृणाम् । धर्म स्वीयमनुष्ठानं, कस्यचित्तु महात्मनः ।। अर्थात् - दूसरों को उपदेश देना सभी के लिए सरल है, मगर स्वयं धर्म का आचरण करने वाले महात्मा विरले ही होते हैं। तात्पर्य यह है कि स्वयं धर्म का पालन करने वाला ही धर्मोपदेश का अधिकारी हो सकता है। जो गुरु स्वयं सोने के कड़े पहनता है, वही अपने शिष्य का अगर चांदी के कड़े पहनने का निषेध करे तो उसका उपदेश वृथा जायेगा। यही नहीं, बल्कि इस प्रकार के उपदेश से धृष्टता का पोषण होगा । भगवान् ने अपरिग्रह का उपदेश दिया है। उस उपदेश को प्रभावशाली बनाने के लिए यह स्वाभाविक ही था कि वे स्वयं परिग्रह से मुक्त होते । परिपूर्ण वीतराग दशा में पहुंच जाने पर न किसी वस्तु को ग्रहण करना आवश्यक होता है, न त्यागना ही । फिर भी भगवान् आदर्श उपस्थित करने के लिए मुक्त थे । भगवान् स्वयं मुक्त थे और अन्य प्राणियों को मुक्त बनाने वाले भी थे। सर्वज्ञ - सर्वदर्शी - कुछ दर्शनकारों के मत के अनुसार मुक्तात्मा जड़ हो जाती है। उसे ज्ञान नहीं रहता। मुक्तात्मा को ज्ञान होगा तो वह सब बातें जानेगी और सब बातें जानने पर उसे राग-द्वेष भी होगा। राग- -द्वेष होने से कर्म-बन्ध अनिवार्य १२४ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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