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________________ को धन मिलता है तो वह उसे यत्न के साथ सम्भालता ही है। पीढ़ी जात धनिक की तरह धन पर उसकी उपेक्षा नहीं होती । बापूजी का उत्तर सुनकर सेठजी मन ही मन लज्जित से हुए । कहने लगे आप धन्य हैं कि आप में धर्म भी आया और गरीबी भी । तात्पर्य यह है कि उक्त सेठजी के समान आप अपनी स्थिति मत बनाइए । धर्म आपकी खानदानी चीज है, यह समझ कर इसके सेवन में ढील मत कीजिए । भगवान् महावीर गन्धहस्ती थे, यह बात आपको अपने व्यवहार द्वारा सिद्ध करनी चाहिए। इसे सिद्ध करने के लिए शक्ति का सम्पादन करो। जिसके सामने राजा श्रेणिक भी हार गया, जिसके आगे श्रेणिक का क्षत्रियत्व भी न ठहर सका, उसके सामने निर्भयतापूर्वक जाने वाला पुरुष वीर है या कायर ? 'वीर' राजा श्रेणिक क्षत्रिय था और सुदर्शन वैश्य था । फिर भी सुदर्शन की वीरता कैसी बेजोड़ थी, इस बात का विचार करो ! वैश्य वीर होते हैं, कायर नहीं होते। वैश्यों में वीरता नहीं होती, यह मूर्खो का कथन है। 1 वीरता में सुदर्शन का दर्जा राजा श्रेणिक से भी बढ़ गया। सुदर्शन निहत्था था- उसे हाथ में लकड़ी लेने की आवश्यकता न हुई । न उसने यही कहा कि कोई दूसरा सांथ चले तो मैं चलूं। सच्चे वीर पुरुष किसी भी दूसरी चीज पर निर्भर नहीं रहते और न किसी की देखा-देखी करते हैं। सुदर्शन ने ज्यों ही भगवान् महावीर के आगमन का वृत्तान्त जाना, त्यों ही वह उठ खड़ा हुआ। उसने सोचा दूसरे किसका सहारा लिया जाय ! जो संसार के सहारे हैं, उनका सहारा ही मेरे लिए पर्याप्त है । सुदर्शन सेठ अर्जुनमाली के सामने गया । अर्जुन माली मुग्दर उछालता हुआ सुदर्शन सेठ के सामने आया। उस समय क्या भगवान् महावीर वहां मौजूद थे? 'नहीं!' मगर भगवान् महावीर का पुरुषवरगन्धहस्तीपन सुदर्शन सेठ के हृदय में अवश्य मौजूद था। सुदर्शन के हृदय में यह कामना भी नहीं थी कि - प्रभो ! मुझे अर्जुन के मुग्दर से बचा लेना ।' किसी प्रकार की कामना न करके भगवान् महावीर के गन्धहस्तीपन को हृदय में स्थापित करने वाले में ही भगवान् का निवास होता है। अर्जुनमाली लाल-लाल आंखें निकाल कर क्रूरता पूर्वक जब सुदर्शन के सामने आया, तब भी सुदर्शन ने यह विचार नहीं किया कि - 'प्रभो! मुझे बचाना!' प्रत्युत उसने यह विचार किया कि प्रभो! अर्जुन के प्रति मुझे श्री भगवती सूत्र व्याख्यान ६६
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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