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________________ महामारी के प्रकोप से लोग अकाल-मरण से मर रहे थे, वे भगवान् के पदार्पण से बच गये। उनका बच जाना धर्म है या पाप? इस प्रकार का विचार आना शंका करना ही जैन धर्म को कलंकित करना है। ऐसी स्थिति में जो लोग बच जाना, या किसी को मृत्यु से बचा लेना पाप कहते हैं, उनके लिए क्या कहा जाए? __भगवान् के पधारने से सौ-सौ कोस में आनन्द मंगल छा जाता है और प्रजा के दुःख बिना उपाय किये ही मिट जाते हैं। जैसे गंधहस्ती की गंध से साधारण हाथी दूर भाग जाते हैं उसी प्रकार भगवान् के पदार्पण से दुःख दूर भाग जाते हैं। अतएव भगवान् को 'पुरुषवरगंध हस्ती कहा गया है। प्रश्न-भगवान के विचरने के स्थान से सभी ओर सौ-सौ कोस तक उपद्रव नहीं होता और शान्ति का साम्राज्य छा जाता है तो जब भगवान् राजगृही में विराजमान थे तब अर्जुनमाली लोगों को क्यों मारता था? वह भयंकर उपद्रव क्यों मचा रहा था? भगवान् के विचरने से वह उपद्रव क्यों नहीं शान्त हुआ? उत्तर –भगवान् महावीर के पधारने पर ही उपसर्ग मिटना चाहिए। अर्जुनमाली ने भगवान् के पधारने से पहले चाहे जो उपद्रव किया हो, मगर उनके पधारने पर भगवान् की बात तो दूर रही-उनके एक भक्त सुदर्शन के निमित्त से ही उपद्रव मिट गया। ज्योंही सुदर्शन सामने आया कि अर्जुनमाली का शैतान भाग गया और पूर्ण रूप से शान्ति का संचार हो गया। शंका-यदि भगवान् के विचरने या विराजने पर सौ-सौ कोस तक शान्ति रहती है तो जब भगवान् समवसरण में ही विराजमान थे, तभी गौशाला ने आकर दो मुनियों को कैसे भस्म कर दिया? उस समय भगवान् का अतिशय कहां चला गया था? उत्तर-अपवाद सर्वत्र पाये जाते हैं। ग्रीष्म ऋतु में वर्षा, शीत ऋतु में गर्मी और वर्षा ऋतु में सर्दी गर्मी भी हो जाती है। यद्यपि वर्षा आदि साधारणतया ऋतु के अनुसार ही होती हैं, मगर कभी-कभी ऋतु के प्रतिकूल भी हो जाती हैं। अपवाद हो जाने पर भी ऋतु का नाम नहीं पलटता है क्योंकि साधारणतया ऋतु अनुसार ही सर्दी-गर्मी आदि होती हैं। जैसे ऋतुओं के विषय में अपवाद होते हैं, उसी प्रकार अन्य विषयों में अपवाद होते हैं। भगवान् के अतिशय के विषय में यह एक अपवाद है। दस आश्चर्यजनक जो काम हुए हैं, उनमें से एक आश्चर्यकारी कार्य यह भी है। यह अपवाद है। इस अपवाद के कारण भगवान् के अतिशय में कमी नहीं हो सकती। श्री भगवती सूत्र व्याख्यान ६५
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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