SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशकीय किञ्चित्.... ॥ सज्झायो समो तवो गत्थि ॥ प्रभुवीर के शासन में श्रमण परंपरा में अनेक विद्वान श्रमण भगवंत हुए हैं । और इसी परंपरासे आए पू.जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणने आवश्यक सूत्र के ऊपर एक भाष्य की रचना की जो जैनशासन में "विशेष आवश्यक भाष्य" नाम से जाना जाता है, प्राचीन काल में इस ग्रंथ के ऊपर लगभग ८०,००० श्लोक प्रमाण टीका रची गईथी। जो अभी मात्र २८,००० श्लोक प्रमाण अपने पास उपलब्ध है। इस वर्ष २०७०-७१ में हमारे श्री चंद्रप्रभ जैन नया मंदिर ट्रस्ट के तत्वावधान में सागर समुदायके पू. गणिवर्यश्री वैराग्यरत्नसागरजी म.सा. आदि ठाणा-३ का चातुर्मास सानंद संपन्न हुआ । इस चातुर्मास के दरम्यान पू. गणिवर्यश्री के शिष्य नित्य स्वाध्याय में लीन एसे पू.मुनिश्री पार्श्वरत्नसागरजी म.सा. के द्वारा इस विशिष्ट ग्रंथ के उपर गुजराती भाषा में प्रश्नोत्तर के रुप में सविस्तर विवेचन का कार्य चला । इस कठिन ग्रंथ के ऊपर अभी तक एसा प्रश्नोत्तर के रुप में कोई भी कार्य हुआ नहि है। जो की पू. मुनिराजश्री के अथाग परिश्रम से पूर्ण होकर आज जैन शासन के समक्ष रखते हुए हमें अत्यंत आनंद की अनुभूति होती हैं । . पू.श्री के द्वारा हमारे श्री संघ को इस ग्रंथ के प्रकाशन करने की प्रेरणा मिलि । जो की हमने सहर्ष स्वीकार ली और संघ के ज्ञान द्रव्यसे संपूर्ण ग्रंथ के प्रकाशन का पूज्यश्री के द्वारा हमें लाभ मीला। ____ ज्ञानसेवा के इस भगीरथ कार्य के लिए हम पू. गुरुदेवश्री की भूरी भूरी अनुमोदना करते है। और शासन देवसे प्रार्थना करते है की पू.श्री इस कार्य में उत्तरोत्तर प्रगति करके शासन सेवा का अनुपम लाभ लेते रहें। - प्रकाशक
SR No.023131
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwaratnasagar
PublisherChandraprabhu Jain Naya Mandir
Publication Year2015
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_aavashyak
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy