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________________ हि. दिन के पूर्व भाग में सूर्य का ताप अल्प, मध्याह्न में अति तीक्ष्ण और अपराहण में अल्प अथवा अत्यल्प होता है । 15. प्रा. सकम्मेहिं इह संसारे भमंताणं जंतूणं सरणं माआ पिआ भाउणो सुसा धूआ अ न हवन्ति, एक्को एव धम्मो सरणं । सं. स्वकर्मभिरिह संसारे भ्रमतां जन्तूनां शरणं माता पिता भ्रातरः स्वसा दुहिता च न भवन्ति , एक एव धर्मः शरणम् । हि. अपने कर्म से इस संसार में परिभ्रमण करते हए प्राणियों के शरण माता-पिता, भाई-बहन और पुत्र नहीं हैं (लेकिन) एक धर्म ही शरणभूत है। प्रा. जो बाहिरं पासइ, सो मूढो; अंतो पासेइ सो पंडिओ णेओ। सं. यो बाह्यं पश्यति स मूढः, अन्तः पश्यति स पण्डितो ज्ञेयः । हि. जो बाह्य देखता है वह मूढ़ है, अन्दर देखता है वह पंडित है। 17. प्रा. पिउणो ससा पिउसिअत्ति, तह माऊए य ससा माउसिआ इइ कहेइ। सं. पितुः स्वसा पितृश्वसेति, तथा मातुश्च स्वसा मातृश्वसेति कथयति । हि. पिता की बहन बूआ और माता की बहन मौसी, इस प्रकार कहते हैं। 18. प्रा. नणंदा भाउस्स जायाए सिणिज्झइ । सं. ननान्दा भ्रातुर्जायायां स्निह्यति । हि. ननन्द भाई की पत्नी = भाभी पर स्नेह रखती है । 19. प्रा. धूआ माअरं पिअरं च सिलेसइ । सं. दुहिता मातरं पितरं च श्लिष्यति । हि. पुत्री माता और पिता को आलिंगन करती है। 20. प्रा. रामस्स वासुदेवस्स य पिअरम्मि माऊसुं अ परा भत्ती अस्थि । सं. रामस्य वासुदेवस्य च पितरि मातृषु च परा भक्तिरस्ति । हि. बलदेव और वासुदेव की पिता और माता के प्रति श्रेष्ठ भक्ति है। 21. प्रा. सासू जामाऊणं पडिवयाए पाहुडं दाहिन्ति । सं. श्वश्वो जामातृभ्यः प्रतिपदि प्राभृतं दास्यन्ति । हि. सासुएँ दामादों को प्रतिपदा के दिन उपहार देंगी। 22. प्रा. जा नारी भत्तारम्मि पउस्सेइ, सा सुहं न पावेइ । सं. या नारी भर्तरि प्रद्वेष्टि, सा सुखं न प्राप्नोति । हि. जो स्त्री पति पर द्वेष करती है, वह सुख नहीं पाती है ।
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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