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________________ 19. प्रा. गोयमाओ गणिणो पण्हाणमुत्तरं जाणिमो । सं. गौतमाद् गणिनः प्रश्नानामुत्तरं जानीमः । हि. गौतम गणधर से हम प्रश्नों के उत्तर जानते हैं। 20. प्रा. गुरुस्स विणएण मुरुक्खो वि पंडिओ होइ । सं. गुरोविनयेन मूर्योऽपि पण्डितो भवति । हि. गुरु के विनय से मूर्ख भी पण्डित बनते है। 21. प्रा. नत्थि कामसमो वाही, नत्थि मोहसमो रिऊ । नत्थि कोवसमो वण्ही, नत्थि नाणा परं सुहं ।।8।। सं. कामसमो व्याधिर्नास्ति, मोहसमो रिपुर्नास्ति ।। कोपसमो वह्निर्नास्ति, ज्ञानात् परं सुखं नास्ति ||8|| हि. काम समान व्याधि नहीं है, मोह समान दुश्मन नहीं है, क्रोध समान अग्नि नहीं है, ज्ञान से श्रेष्ठ सुख नहीं है । ।18।। हिन्दी वाक्यों का प्राकृत एवं संस्कृत अनुवाद 1. हि. शिष्य गुरु को प्रश्न पूछते हैं। प्रा. सीसा गुरुं पण्हाइं पुच्छंति । सं. शिष्या गुरून् प्रश्नानि पृच्छन्ति । हि. हम सर्वज्ञ भगवान के पास धर्म सुनते हैं। प्रा. अम्हे सवण्णुत्तो धम्मं सुणेमो । सं. वयं सर्वज्ञाद् धर्मं श्रृणुमः । हि. अज्ञानियों से पण्डित डरते हैं । प्रा. अन्नाणीसुतो अभिण्णु बीहेन्ति । -- सं. अज्ञानिभ्योऽभिज्ञाः बिभ्यति । हि. मैं हमेशा पुष्पों से शांति (जिन) की पूजा करता हूँ। प्रा. हं सब्बया पुप्फेहिं संतिं अच्चामि । सं. अहं सर्वदा पुष्पैः शान्तिमर्चयामि । .. हि. वह तीक्ष्ण शख से शत्रु को नष्ट करता है। प्रा. सो तिक्खेण सत्येण सत्तुं हणइ । सं. स तीक्ष्णेन शस्त्रेण शत्रु हन्ति । 6. हि. शान्ति (जिनेश्वर) के ध्यान से कल्याण होता है । प्रा. संतिस्स झाणेण कल्लाणं होइ । सं. शान्तेानेन कल्याणं भवति । श्री
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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