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________________ हिन्दी बालक सर्प को देखने से डरता है, दंसणेण डरइ, पुण संफासेण ? तो स्पर्श से क्या ? 11. मुणिंदो सीसाणं आचार्य शिष्यों को सूत्रों सुत्ताणमट्ठे उवदिसइ । सूत्राणामर्थमुपदिशति । के अर्थ का उपदेश देते हैं । ज्ञान तत्त्वों का प्रकाशक होता है । धर्म किसको नहीं क्र. प्राकृत 10. बालो सप्पस्स किं 12. नाणं तत्ताणं पयासगं ज्ञानं तत्त्वानां प्रकाशकं होइ | भवति । धर्मः कस्मैचित् न 13. धम्मो कासइ न रोएइ ! 14. निडुरो पावेहिंतो धम्मं निष्ठुरः पापेभ्यो धर्मं रोचते ! | वंछइ । वाञ्छति । 15. आणंदो सावगो | दंसणत्तो न कया चलइ | 16. पव्वयाणं मंदरो | निच्चलो अत्थि | 17. सो पमाया सुत्तं पुत्तं पहरेइ | 18. अट्ठाए गामाओ गाममडंति बंभणा । 19. तस्स वच्छस्स संस्कृत बालः सर्पस्य दर्शनेन बिभेति, किं पुनः संस्पर्शेन ? मुनीन्द्रः शिष्येभ्यः | पक्काई फलाई अईव महुराणि संति । 20. धम्मिओ सइ दीणाणं | जणाणं धन्नाइ देइ । आनन्दः श्रावको | दर्शनान्न कदा चलति | पर्वतानां मन्दरो निश्चलोऽस्ति । स प्रमादात् सुप्तं पुत्रं प्रहरति । अर्थाय ग्रामाद् ग्राममटन्ति ब्राह्मणाः । तस्य वृक्षस्य पक्वानि फलान्यतीवमधुराणि सन्ति । धार्मिकः सदा दीनेभ्यो जनेभ्यो धान्यानि ददाति । २८ रुचता है ! निर्दय मनुष्य पापों से धर्म को चाहता है । आनंद श्रावक सम्यक्त्व । से कभी भी विचलित नहीं होता है । पर्वतों में मेरुपर्वत निश्चल है । वह भूल से सोये हुए पुत्र को मारता है । ब्राह्मण धन के लिए (एक) गाँव से (दूसरे) गाँव घूमते हैं । उस वृक्ष के पके फल अत्यंत मीठे हैं । धर्मिष्ठ व्यक्ति हमेशा गरीब व्यक्तियों को धान्य देता है ।
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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