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________________ संस्कृत अनुवाद दुर्भरोदरस्य कृते किं किं न कृतम् ?, कः को न प्रार्थितः ? क्व क्व शीर्षं न नामितम् ? किं न कृतं ?, किं न कर्तव्यम् ? ||264।। खड्गच्छिन्ना जीवन्ति , पर्वतपतिता अपि केऽपि जीवन्ति । उदधिपतिता जीवन्ति, चटुच्छिन्ना न जीवन्ति ।।265।। देशोनया पूर्वकोट्या च यच्चारित्रमर्जितम् । तदपि कषायिकमात्रो नरो मुहूर्तेन हारयति ||266।। तद् गृहं नाऽस्ति, तद् राजकुलं नाऽस्ति , तद् देवकुलमपि नाऽस्ति । यत्राऽकारणकुपिताः, द्वौ त्रयो वा खला न दृश्यन्ते ।।267।।। हिन्दी अनुवाद दुःखपूर्वक भरा जाय ऐसे पेट हेतु क्या-क्या नहीं किया ? किस-किस के पास (प्रत्येक व्यक्ति के पास) हाथ लम्बा नहीं किया ? कहाँ-कहाँ मस्तक नहीं झुकाया ? क्या-क्या नहीं किया ? और क्या-क्या करने योग्य नहीं है ? (264) तलवार से भेदे हुए जीवित रहते हैं, पर्वत पर से गिरे हुए कुछ व्यक्ति जीवित रहते हैं, समुद्र में गिरे हुए भी जीवित रहते हैं परन्तु कुक्षिप्रमाण आहार नहीं मिलने पर जीवित नहीं रह सकते हैं । (265) देशोन पूर्वक्रोड़ वर्षपर्यन्त संयमपालन से जो संयमभाव प्राप्त होते हैं, वे भी कषाय करने मात्र से जीव एक मुहूर्त में हार जाता है । (266) __ वैसा कोई घर नहीं है, वैसा कोई राजकुल नहीं है, वैसा कोई देवालय नहीं है, जहाँ निष्कारण क्रोधित दो या तीन पुरुष दिखाई नहीं देते हैं । (267) प्राकृत 'अइतज्जणानकायव्वा, 'पुत्तकलत्तेसुसामिए अभिच्चे । 'दहिअंपि महिज्जंतं, 1 छंडइ देहं 12 1संदेहो ।।268।। वल्ली नरिंदचित्तं, 'वक्खाणं "पाणिअंच महिलाओ। 'तत्थ य वच्चंति 'सया, जत्थ य धुत्तेहिं "निज्जंति ।।269।। 4अवलोअइ गंथत्थं, अत्थं गहिऊण पावए 'मुक्खं । परलोए देइ दिट्ठी, मुणिवरसारिच्छया 'वेसा ।।270।। 'दो पंथेहिं न गम्मइ, दोमुहसूईन सीवए कंथं । 1"दुन्नि 13 14हुंति 12कया विहु, इंदियसुक्खं च "मुक्खं च ।।271।। -२२९
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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