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________________ नाणाई-प्राकृत नाणं मोहमहंधयारलहरी-संहारसूरुग्गमो, नाणं 'दिट्ठअदिट्ठइट्ठघडणा-संकप्पकप्पडुमो । नाणं दुज्जयकम्मकुंजघडा - पंचत्तपंचाणणो, नाणं जीवअजीववत्थुविसर- स्सालोयणे "लोयणं ।।232।। 'जहा खरो चंदणभारवाही, 4भारस्स भागी'न हु चंदणस्स । एवं खु"नाणी चरणेण हीणो, 12नाणस्स 13भागी न हु 14सुग्गईए ।।233।। 'सुच्चा जाणइकल्लाणं, 'सुच्चा जाणइ पावगं । उभयं पिजाणइ 'सोच्चा, 10जं "सेयं 12 13समायरे ।।234।। ज्ञानादि संस्कृत अनुवाद ज्ञानं मोहमहान्धकारलहरीसंहारसूर्योद्गमः, ज्ञानं दृष्टाऽदृष्टेष्टघटनासङ्कल्पकल्पद्रुमः । ज्ञानं दुर्जयकर्मकुञ्जरघटापञ्चत्वपञ्चाननः, ज्ञानं जीवाऽजीववस्तुसमूहस्याऽऽलोकने लोचनम् ।।232।। यथा चन्दनभारवाही खरः, भारस्य भागी न खलु चन्दनस्य । एवं खलु चरणेन हीनो ज्ञानी, ज्ञानस्य भागी न खलु सुगते: ।।233।। श्रुत्वा कल्याणं जानाति , श्रुत्वा पापकं जानाति । श्रुत्वोभयमपि जानाति , यच्छ्रेयस्तत् समाचरेत् ।।234।। हिन्दी अनुवाद मोहरूपी अंधकार की परंपरा को दूर करने में ज्ञान सूर्य के उदय समान है, ज्ञान दृष्ट (देखे हुए) या अदृष्ट (नहीं देखे हुए) मनपसंद कार्य के संकल्प हेतु कल्पवृक्ष समान है, ज्ञान दुर्जय कर्मरूपी हाथियों के वृन्द का नाश करने में सिंह समान है और ज्ञान जीव-अजीवादि पदार्थों के समूह को देखने के लिए चक्षुसमान है । (232) जिस प्रकार चंदन के भार को वहन करनेवाला गधा मात्र भार को ही वहन करता है परंतु चंदन की सुगंध ग्रहण नहीं करता है, उसी तरह चारित्ररहित ज्ञानी, मात्र ज्ञान को जानता है परंतु सद्गति प्राप्त नहीं करता है । (233) -२२०
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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