SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृत अनुवाद अन्यदा गृहं दीप्तं, तस्य भार्यया भणित :- लघु शब्दायेत ठक्कुरमिति, ततः स तत्र गतः शनैः शनैरासन्नं भूत्वा कर्णे कथयति यावत् स तत्र गत्वा शनैः शनैरासन्नं भूत्वाऽऽख्यातुं प्रवृत्तः, तावद् गृहं सर्वं दग्धम्, तत्राऽपि तिरस्कृतो भणितश्च-ईदृशे कार्ये नाऽगम्यते, नाऽप्याख्यायते किन्त्वात्मना चैव पानीयं वा गोमुत्रं वाऽऽदिं कृत्वा गोरसमपि क्षुभ्येत (क्षिप्येत) तावद् यावद् विध्यायते, अन्यदा तस्य दण्डिपुत्रकस्य स्नात्वा धूपयतो धूमो निर्गच्छति इति गोमूत्रं क्षिप्तं, गोमूत्रादिकं च ॥ हिन्दी अनुवाद तब उसकी पत्नी ने कहा- मुखिया को जल्दी बुलाओ । उसके बाद वह वहाँ गया, धीरे-धीरे नजदीक जाकर कान में कहता है । जब तक वह धीरे-धीरे नजदीक जाकर कहने का प्रारम्भ करता है तब तक पूरा घर जल गया, वहाँ भी तिरस्कृत हुआ और कहा कि ऐसे प्रसंग में आना और कहना भी नहीं चाहिए परन्तु जब तक आग न बुझे, तबतक स्वयं ही पानी, गोमूत्र अथवा गोरस आदि - " एक बार वह दंडीपुत्र स्नान करके धूप करता था । तब उसके शरीर में से धूआँ निकलने लगा तब उसने अपने ऊपर गोमूत्रादि डाला । १९१
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy