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________________ उत्तम संयमस्थान को प्राप्त नमिराजर्षि को, ब्राह्मण के वेष में इन्द्र महाराजा इस प्रकार के वचन कहते हैं । (106) हे आर्य ! मिथिला नगरी में महल और घरों में कोलाहल से व्याप्त भयंकर शब्द क्या सुनाई नहीं देते हैं ? (107) इस प्रकार के शब्दों को सुनकर हेतु और कारण से प्रेरित नमिराजर्षि ने उसके बाद शक्रेन्द्र को इस प्रकार कहा । (108) प्राकृत मिहिलाए'चेइए "वच्छे, सीयच्छाए "मणोरमे । पत्तपुप्फफलोवेए, 'बहूणं बहुगुणे "सया ।।109।। 13वाएणहीरमाणम्मि, 1 चेइयम्मिमणोरमे। 15दुहिया 16असरणा "अत्ता, 18एए 2 कन्दन्ति 'भो खगा ।।110।। 'एय मटुं निसामित्ता, 'हेउकारणचोइओ। तिओ'नमि रायरिसिं, देविन्दो 'इणमब्बवी ।।111 ।। 2एस अग्गी य 'वाऊ'य, एयं 'डज्झइ'मन्दिरं । भयवं 10अन्तेउरं तेणं, "कीसणं'नावपेक्खह ।। 112।। . संस्कृत अनुवाद भो ! मिथिलायां शीतच्छाये, मनोरमे, पत्रपुष्पफलोपेते, सदा बहूनां बहाणे, चैत्ये वृक्षे; मनोरमे चैत्ये वातेन ह्रियमाणे । दुःखिता अशरणा आर्ता एते खगाः क्रन्दन्ति ||109, 1101 एतमर्थं निशम्य हेतुकारणनोदितो देवेन्द्रो; नमिं राजर्षि तत इदमब्रवीत् ||111|| भगवन् !, एषोऽग्निश्च वायुश्च , एतन् मन्दिरं दह्यते, तेन अन्तःपुरं कस्मान् नावप्रेक्षसे ? ||112|| हिन्दी अनुवाद हे भाग्यवन्त ! मिथिला नगरी में शीतल छायावाला, मनोहर, पत्ते, पुष्प और फल से युक्त, अनेक लोगों को अत्यधिक गुणकारी रमणीय चैत्यवृक्ष पवन से हिलने पर, दुःखी, शरणरहित और पीडित ये पक्षी आक्रन्द कर रहे हैं । (109, 110) -१६१
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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