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________________ 8. हि. जब पुण्य नष्ट होता है, तब सब विपरीत होता है। प्रा. जया पुण्णं नस्सई, तया सव्वं विवरीअं होइ । सं. यदा पुण्यं नश्यति, तदा सर्वं विपरीतं भवति । हि. हे प्रभो ! तुम्हारे चरण की शरण लेकर, कौन-सा मनुष्य संसार नहीं तरेगा ? | प्रा. हे पहू ! तुम्ह चरणाणं सरणं गहिऊण को जणो संसारं न तरिहिइ ? | __ सं. हे प्रभो ! तव चरणानां शरणं गृहीत्वा को जनः संसारं न तरिष्यति ? | 10. हि. इस लोक (भव) में जो शुभ अथवा अशुभ कर्म किया है, वही परलोक में साथ में आता है, अतः (इसलिए) तू शुभकर्म का संचय कर | प्रा. इमंसि लोगंसि जं सुहासुहकम्मं कयं, तं चेव परम्मि लोगम्मि सह आगच्छेइ, तओ तुं सुहकम्मं संचिणसु । समास विग्रह :- सुहं य असुहं य सुहासुहं । सुहासुहं य तं कम्म सुहासुहकम्मं । (द्वन्द्व-कर्मधारयौ) । सुहं य तं कम्मं सुहकम्मं (कर्मधारयः) । अस्मिल्लोके यच्छुभाशुभकर्म कृतं , तच्चैव परस्मिल्लोके सहाऽऽगच्छति, ततस्त्वं शुभकर्म संचिन् । 11. हि. इस संसार में किसका जीवन सफल है ? प्रा. अमम्मि संसारंमि कस्स जीविअं सहलं अत्थि ? | सं. अमुष्मिन् संसारे कस्य जीवितं सफलमस्ति ? | 12. हि. जिसके जीवित रहने पर सज्जन और मुनि जीवित रहते हैं और जो हमेशा परोपकारी होते हैं, उनका जीवन सफल है। प्रा. जाहे जीवंते सज्जणा मुणिणो य जीवन्ति, यश्च सदा परोपकारी भवति, तस्य जीविअं सहलं अस्थि । समास विग्रह :- संता य ते जणा सज्जणा (कर्मधारयः) । परेसिं उवयारी परोवयारी (षष्ठीतत्पुरुषः)। सं. यस्मिन् जीवति सज्जना मुनयश्च जीवन्ति , यश्च सदा परोपकारी भवति, तस्य जीवितं सफलमस्ति । 13. हि. यह मेरा है और यह तुम्हारा है, इस प्रकार (भाव) लघुमनवाले को होता है परन्तु महात्माओं को तो सम्पूर्ण जगत् अपना ही है । श १३५
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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