SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 16. प्रा. सव्वस्स समणसंघस्स, भगवओ अंजलिं करिअ सीसे | सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयं पि ।।61|| समास विग्रह :- समणपहाणो संघो समणसंघो तस्स समणसंघस्स (उत्तरपदलोपी तत्पुरुषः) । सं. भगवतः सर्वस्य श्रमणसङ्घस्य शीर्षेऽअलिं कृत्वा । सर्वं क्षमयित्वा, अहमपि सर्वस्य क्षाम्यामि ||61।। हि. पूज्य सभी श्रमणसंघ को मस्तक पर दो हाथ जोड़कर, सभी को क्षमा करके, मैं भी सभी के पास क्षमा माँगता हूँ। 17. प्रा. जीसे खित्ते साहू, दंसणनाणेहिं चरणसहिएहिं । साहति मुक्खमग्गं, सा देवी हरउ दुरिआई ।।62।। समास विग्रह :- दंसणं य नाणं य दंसणनाणाइं, तेहिं दसणनाणेहिं (द्वन्द्वसमासः) । चरणेण सहिआइं चरणसहिआई तेहिं चरणसहिएहिं (तृतीयातत्पुरुषः)। मुक्खस्स मग्गो मुक्खमग्गो तं मुक्खमग्गं (षष्ठीतत्पुरुषः) । सं. यस्याः क्षेत्रे साधवः, चारित्रसहितैर्दर्शनज्ञानैः । मोक्षमार्गं साध्नुवन्ति, सा देवी दुरितानि हरतुः ।।62।। हि. जिसके क्षेत्र में साधु भगवन्त चारित्रसहित दर्शन और ज्ञान द्वारा मोक्षमार्ग की साधना करते हैं, वह देवी पापों को दूर करे । 18. प्रा. हसउ अ रमउ अ तुह सहिजणो, हसामु अ रमामु अ अहंपि । हससु अ रमसु अ तंपि, इअ भणिही मम पिओ इण्हि ।।63।। समास विग्रह :- सहीणं जणो सहिजणो (षष्ठीतत्पुरुषः) । सं. तव सखिजनो हसतु रमतां च, अहमपि हसानि रमै च । त्वमपि हस रमस्व च, इति मम प्रिय इदानीमभणत् ।।63।। हि. तेरा मित्रवर्ग हँसे और खेले, मैं भी हँसू और खेलूं, तू भी हँस और खेल इस प्रकार मेरे प्रिय ने अब कहा । 19. प्रा. सामाइयंमि उ कए, समणो इव सावओ हवइ जम्हा । एएण कारणेणं, बहुसो सामाइयं कुज्जा ||64।। सं. सामायिके तु कृते , यस्मात् श्रावकः श्रमण इव भवति । एतेन कारणेन, बहुशः सामायिकं कुर्यात् ||64|| हि. जिस कारण से सामायिक करने पर श्रावक साधु के समान बनता है, इस कारण से बहुत बार सामायिक करना चाहिए। १३१ 8
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy