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________________ वणे वासो वणवासो, तं वणवासं (सप्तमीतत्पुरुषः) । सं. कृष्णेन भगवान् पृष्टः, स्वामिन् ! कुतो मे मरणं भविष्यति ?, स्वामिना कथितम् - य एष ते ज्येष्टभ्राता वसुदेवपुत्रो जरादेव्या जातो जराकुमारो नाम, अस्मात्तव मृत्युस्ततो यादवानां जराकुमारे सविषादा शोकेन निपतिता दृष्टिः, चिन्तितमनेन, अहो कष्टम्, अहं वसुदेवपुत्रो भूत्वा सकलजनेष्टं कनिष्ठं भ्रातरं विनाशयिष्यामीति, तत आप्रच्छ्य यादवजनं जनार्दनरक्षणार्थं गतो वनवासं जराकुमारः । हि. कृष्ण द्वारा भगवान् पूछे गए, हे स्वामी ! मेरी मृत्यु किससे होगी ? स्वामी ने कहा - यह तेरा बड़ा भाई, वसुदेव का पुत्र, जरादेवी से उत्पन्न जराकुमार नामक है, उससे तेरी मृत्यु होगी । इससे जराकुमार पर यादवों की खेदसहित शोकवाली दृष्टि गिरी । तब जराकुमार ने विचार किया कि अहो दुःख है कि मैं वसुदेव का पुत्र होकर सभी लोगों को इष्ट छोटे भाई का विनाश करूँगा, अतः यादवों की अनुमति लेकर कृष्ण के रक्षण हेतु जराकुमार वनवास को चला गया । 6. प्रा. जई रूवं होतं, ता सव्वगुणसंपया होन्ता । समास विग्रह :- सव्वे य एए गुणा सव्वगुणा । सव्वगुणाणं संपया सव्वगुणसंपया (कर्मधारय-षष्ठीतत्पुरुषौ ) सं. यदि रूपमभविष्यत् ततः सर्वगुणसम्पदभविष्यत् । हि. जो रूपवान् होता तो सब गुणसम्पत्ति होती । 7. प्रा. हे वीरजिणेसर निवडिमो | समास विग्रह :- जिणाणं ईसरो जिणेसरो । वीरो य एसो जिणेसरो वीरजिणेसरो, संबोहणे हे वीरजिणेसर ! (षष्ठीतत्पुरुष कर्मधारयौ) । सं. हे वीरजिनेश्वर ! तथा कुरु अस्माकं प्रसादं यथा न संसारे वयं निपतामः । तह कुणसु अम्ह पसायं, जह न संसारे अम्ह हि. हे वीरजिनेश्वर ! हम पर ऐसी कृपा करो कि जिससे हम संसार में न रहें । १२८
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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