SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रा. संजमंमि ठिआ साहवो सहेण दिणाइं जावेन्ति । सं. संयमे स्थिताः साधवः सुखेन दिनानि यापयन्ति । 16. हि. जो भाइयों और मित्रों को परस्पर लड़ाता है और समय आने पर व्यक्ति के पास अपना मस्तक भी कटाता है, वह अदृष्ट ही है। प्रा. जं भाऊणो मित्ताणि य परुप्परं जुज्झावेइ समयंमि य जणेण अप्पणो सीसंपि छिंदावेइ तं दइवं अत्थि । सं. यद् भ्रातन् मित्राणि च परस्परं योधयति, समये च जनेनाऽऽत्मनः शीर्षमपि छेदयति तद् दैवमस्ति । हि. सन्तुष्ट रानी ने चोर को अपने घर ले जाकर सुन्दर भोजन करवाया, उसके बाद वस्त्र और आभूषण देकर अनुज्ञा दी। प्रा. तुहा महिसी चोरं अप्पणो गेहम्मि नेऊण सुट्ट भोयणं करावीअ, तत्तो वत्थाइं भूसणाइं च दाऊण अणुजाणीअ । सं. तुष्टा महिषी चौरमात्मनो गेहे नीत्वा सुष्टु भोजनमकारयत्, ततो वस्त्राणि भूषणानि च दत्वाऽन्वजानात् । 18. हि. ज्ञातपुत्र समवसरण में बैठकर जन्म और मृत्यु का कारण मनुष्यों और देवताओं को समझाते हैं। प्रा. नायपुत्तो समोसरणंमि उवविसीय जम्मणो मरणस्स य कारणं मणूसे देवे य बोहावेइ । सं. ज्ञातपत्रः समवसरणे उपविश्य जन्मनो मरणस्य च कारणं मनुष्यान् देवांश्च बोधयति । हि. साधु पुरुष कहते हैं कि पापकर्म जीवों को सदा संसारचक्र में भ्रमण करवाते हैं। प्रा. साहवो पुरिसा कहेन्ति-पावकम्माइं जीवे सया संसारचक्कंमि भमाडेइरे। सं. साधवः पुरुषाः कथयन्ति-पापकर्माणि जीवान् सदा संसारचक्रे भ्रामयन्ति । हि. सब धर्म का त्याग करके एक वीतरागदेव को तू भज, वही तुझे सभी पापों से मुक्त करायेगा । प्रा. सवे धम्मे चइत्ता एगं वीयरागं तुं भजसु, सो च्चिय सव्वेसुन्तो मोयाविहिइ। सं. सर्वान् धर्मांस्त्यक्त्वैकं वीतरागं त्वं भज, स एव सर्वेभ्यः पापेभ्यः मोचयिष्यति । ११४
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy