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________________ सं. सिद्धराजो हेमचन्द्रसूरिणा व्याकरणमरचयत्, ततः सिद्धहैममिति तस्याऽभिधानमस्थापयत् ।। सुशिष्य गुरु भगवन्तों को अपनी भूलें सुनाते हैं और सुनाकर बाद में क्षमा माँगते हैं। प्रा. सुसीसा गुरूणं अप्पकेराइं खलिआई सुणावेन्ति, सुणावित्ता य पच्छा ते खामेन्ति । सं. सुशिष्या गुरुभ्य आत्मीयानि स्खलितानि श्रावयन्ति, श्रावयित्वा च पश्चात्ते क्षमयन्ति । हि. जो पुस्तकों का विनाश करते हैं, वे परलोक में मूक, अन्ध और बहरे होते हैं। प्रा. जे पोत्थयाइं विणासेन्ति, ते परलोए मूगा अंधा बहिरा य हवन्ति । सं. ये पुस्तकानि विनाशयन्ति, ते परलोके मूका अन्धा बधिराश्च भवन्ति । हि. आचार्य भगवन्त शिष्यों को रात्रि के अन्तिम प्रहर में उठाकर हमेशा स्वाध्याय करवाते हैं। प्रा. आयरियो सीसे स्तीए चरमे जामे उट्ठाविऊण सया सज्झायं करावेई । सं. आचार्यश्शिष्यान् रात्रेश्चरमे यामे उत्थाप्य सदा स्वाध्यायं कारयति । 6. हि. नृत्यकार ने राजा और सभाजनों को भरतराजा का नाटक दिखाया और वह (नाटक) दिखलाते नृत्यकार ने केवलज्ञान प्राप्त किया । प्रा. नडो राइणं परिसाए लोए य भरहरायस्स नाड्यं दक्खवीअ, तं च दावन्तो नट्टओ केवलनाणं पावीअ । सं. नटो राजानं पर्षदो लोकांश्च भरतराजस्य नाट्यमदर्शयत्, तच्च दर्शयन्नर्तकः केवलज्ञानं प्राप्नोत् । हि. पिता पुत्रों को विद्वान गुरु द्वारा शिक्षा (बोध) दिलाते हैं । प्रा. पिआ पुत्ते विउसेण गुरुणा अणुसासेइ । सं. पिता पुत्रान् विषा गुरुणाऽनुशासयति । हि. राजा के बुद्धिशाली मन्त्री ने अपनी बुद्धि से नगर के प्रति आते हुए शत्रुओं का नाश करवाया । प्रा. रण्णो धीमंतो मंती अप्पकेराए बुद्धीए नयरं पइ आगच्छंते सत्तुणो नासवीअ। सं. राज्ञो धीमान् मन्त्री आत्मीयया बुद्ध्या नगरं प्रत्यागच्छतः शत्रूननाशयत् । - ११२
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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