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________________ 12. हि. सभी इन्द्र तीर्थंकरों के जन्म समय में मेरुपर्वत पर तीर्थंकरों को ले जाकर जन्म महोत्सव करते हैं । प्रा. सव्वे इंदा तित्थयराणं जम्मम्मि तित्थयरे मेरुम्मि नेऊण जम्ममहूसवं कुणन्ति । सं. सर्वे इन्द्रास्तीर्थङ्कराणां जन्मनि तीर्थंकरान् मेरौ नीत्वा जन्मोत्सवं कुर्वन्ति । हि. लोगों को सम्पत्ति में अभिमानी नहीं होना चाहिए और आपत्ति में (दुःख में) मुझाना नहीं चाहिए । प्रा. जणा संपयाए गविरा न हवेज्ज, आवयाए य णाई मुज्झेज्ज । सं. जनाः सम्पदि गर्विष्ठा न भवेयुः आपदि च न मुह्येयुः । 14. हि. जीव अपने ही कर्मों द्वारा सुख और दुःख प्राप्त करता है, दूसरा देता है, वह मिथ्या है। प्रा. जीवो अप्पस्स कम्मेहिं चिय सुहं च दुहं च पावइ, अन्नो देइ, तं मिच्छा अस्थि । सं. जीव आत्मनः कर्मणैव सुखं दुःखं च प्राप्नोति, अन्यो ददाति तन् मिथ्याऽस्ति । 15. हि. गुरु भगवंतों के आशीर्वाद से कल्याण ही होता है, अतः उनकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना । प्रा. गुरूणं आसीसा कल्लाणं चिय होइ, तत्तो तेसिं आणा न अवमण्णिअब्बा। सं. गुरूणामाशिषा कल्याणं चैव भवति, ततस्तेषामाज्ञा नाऽवमन्तव्या । 16. हि. तपश्चर्या से कर्मों की निर्जरा होती है और क्रोध से कर्मबन्ध होते हैं। प्रा. तवसा कम्माइं निज्जरेन्ति, कोहेण य कम्माइं बंधिज्जन्ति । सं. तपसा कर्माणि क्षीयन्ते, क्रोधेन च कर्माणि बध्यन्ते । 17. हि. शास्त्रपठित मूर्ख बहुत होते हैं, लेकिन जो आचारवान हैं वे ही पण्डित कहलाते हैं। प्रा. सत्यं पढिअवंता मुरुक्खा बहवो, किंतु जे आयारवंता संति ते च्चिय अहिण्णउ कहिज्जन्ति । सं. शास्त्रं पठितवन्तो मूर्खा बहवो भवन्ति, किं तु ये आचारवन्तः, ते एवाऽभिज्ञाः कथ्यन्ते ।। १०५ १०५ ===
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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