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________________ हि. जीवों और अजीवों का सूक्ष्म स्वरूप जितना और जैसा जिनेश्वर के सिद्धान्त में है, उतना और वैसा स्वरूप अन्य दर्शन में नहीं है। 33. प्रा. एवं जीवंताणं, कालेण कयाइ होइ संपत्ती । जीवाणं मयाणं पुण, कत्तो दीहमि संसारे ? ||39।। सं. एवं जीवतां जीवानां कालेन कदाचित् संपत्तिर्भवति । मृतानां जीवानां पुनः, दीघे संसारे कुतः ? ||39।। हि. इस प्रकार जिन्दे प्राणियों को कालक्रम से कदाचित् संपत्ति हो सकती है, लेकिन मरे हुए प्राणियों को पुनः इस दीर्घ संसार में (संपत्ति) कहाँ से हो। 34. प्रा. पाणेसु धरन्तेसु य, नियमा उच्छाहसत्तिममुयंतो । पावेइ फलं पुरिसो, नियववसायाणुरूवं तु ||40।। सं. प्राणेषु धरत्सु च, नियमादुत्साहशक्तिममुञ्चन् । पुरुषो निजव्यवसायानुरूपं तु फलं प्राप्नोति ||40।। हि. प्राण धारण करने पर निश्चय उत्साहशक्ति का त्याग नहीं करते हुए पुरुष अपने व्यवसाय के अनुरूप फल प्राप्त करता है। 35. प्रा. दारं च विवाहंतो, भममाणो मंडलाइ चत्तारि। सूएइ अप्पणो तह, वहूइ चउगइभवे भमणं ||41।। सं. दारांश्च विवाहयन्, चत्वारि मण्डलानि भ्रमन् । आत्मनस्तथा वध्वाश्चतुर्गतिभवे भ्रमणं सूचयति ।।41।। हि. स्त्री के साथ शादी करते हुए चार मण्डल (फेरा) घूमते हुए अपने तथा बहू के चार गतिरूप संसार में भ्रमण को सूचित करता है। हिन्दी वाक्यों का प्राकृत एवं संस्कृत अनुवाद 1. हि. प्रभात में गोपाल गायों को दोहता है। प्रा. पच्चूसे गोवा गावीओ दोहेन्ति । सं. प्रत्यूषे गोपा गा दुहन्ति । हि. शुभ कर्मवाले जीव शुभकार्य करके परलोक में सुखी होते हैं। प्रा. सुकम्मा जीवा सुहाइं किच्चाई करित्ता, परलोए सुहिणो हवन्ति । सं. सुकर्माणो जीवाः शुभानि कृत्यानि कृत्वा , परलोके सुखिनो भवन्ति । 3. हि. हे भगवन् ! आप इस असार संसार में से हमारे जैसे दुःखियों का उद्धार करो। -१०३
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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