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________________ हि. जिनेवर भगवंतों ने जो कहा है वही सत्य है, ऐसी बुद्धि जिसके मन में है उसका सम्यक्त्व निचल है । 17. प्रा. चोरो धणिणो धणं हरित्तए घरे पविसीअ । ____ सं. चौरो धनिनो धनं हर्तुम् गृहे प्राविशत् । हि. चोर ने धनवान का धन हरण (चोरी) करने हेतु घर में प्रवेश किया । 18. प्रा. पच्चूसे जिणे अच्चिय गुरू य. वंदित्ता, पच्चक्खाणं च करित्तु पच्छा य भोयणं कुज्जा । सं. प्रत्यूषे जिनानर्चित्वा, गुरश्च वन्दित्वा, प्रत्याख्यानं च कृत्वा, पश्चाच्च भोजनं कुर्यात् । हि. प्रातःकाल में जिनेश्वर भगवंतों की पूजा करके, गुरु भगवन्तों को वन्दन करके, पच्चक्खाण कर बाद में भोजन करना चाहिए । 19. प्रा. गुरुणा धम्म कुणमाणाणं सावगाणं, समायरंतीणं साविगाणं उवएसो दिण्णो । सं. गुरुणा धर्मं कुर्वद्भ्यः श्रावकेभ्यः, समाचरन्तीभ्यश्च श्राविकाभ्यः उपदेशो दत्तः । हि. धर्म करते हुए श्रावकों और धर्म करती हुई श्राविकाओं को गुरु भगवन्त द्वारा उपदेश दिया गया । 20. प्रा. पिउणा सिक्खीअमाणो पुत्तो सिक्खिज्जन्ती य पुत्ती गुणे लहेज्ज । सं. पित्रा शिक्ष्यमाणः पुत्रः शिक्ष्यमाणा च पुत्री गुणान् लभेते । हि. पिता द्वारा हितशिक्षा दिया जाता पुत्र और हितशिक्षा दी जाती पुत्री गुणों को प्राप्त करते हैं। 21. प्रा. सा महादेवी सुराणं रमणीहिं सलहिज्जंती, किन्नरीहिं गाइज्जन्ती, बुहेहिं थुन्वन्ती, बंधुणा मित्तेण य अभिनंदिज्जंती गब्भमुबहइ । सं. सा महादेवी सुराणां रमणीभिः श्लाघ्यमाना, किन्नरीभिर्गीयमाना, बुधैः स्तूयमाना, बन्धुना मित्रेण चाभिनन्द्यमाना गर्भमुद्वहति । हि. वह महादेवी देवांगनाओं द्वारा प्रशंसा की जाती, किन्नरियों द्वारा गीतगान की जाती, पण्डितों द्वारा स्तुति की जाती, बन्धु और मित्र द्वारा अभिनन्दन की जाती गर्भ को वहन करती है । 22. प्रा. जत्थ रमणीण रूवं, रमणिज्जं पेच्छिऊण अमरीओ। लज्जन्तीओ व चिंताइ, कहवि निदं न पावंति ।।36।। - ९५ -
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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