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________________ अत्थं भासइ अरिहा, सुत्तं गंथंति गणहरा निउणा । (आवश्यक सूत्र) 'पोराणमद्धमागह भासानियमं हवइ सूत्तं' इत्यादि आगम वचन होने से जिनेश्वर देव अर्धमागधी भाषा में आगमार्थ कहते है और गणधर भगवंत सूत्र रचना करते है, फिर भी उनकी प्राकृतता अबाधित रहती है, क्योंकि अर्धमागधी भाषा को आर्ष प्राकृत मानी जाती है । प्राकृत में विवेचन साहित्य ग्रंथ :- आगमों पर नियुक्तियाँ, भाष्य, चूर्णि आदि विवेचन के ग्रंथ प्राकृत भाषा में रचे गए है, जिनका जिनागमों के विवेचन-ग्रंथों में अग्रस्थान है, इतना ही नहीं, किंतु आगम ग्रंथ जितना महत्त्व उन्हे दिया गया है। अन्य जैनग्रंथ :- प्राकृत भाषा में जैनों के अनेक ग्रंथ रचे गए है । जैसे- प्रकरण ग्रंथ, कुलक, कथानक, चरित्र-ग्रंथ, प्रकीर्णक, अन्य अन्य विषय के ग्रंथ, वैद्यक, अष्टांग निमित्त तथा ज्योतिष आदि। जैन दर्शन की द्वादशांगी के बीज रुप तीन वचन, जो तीर्थंकर परमात्मा गणधर भगवंतों को प्रदान करते है, जिन्हे प्राप्तकर गणधर भगवंत द्वादशांगी की रचना करते हैं, जो 'त्रिपदी' के नाम से जगत् में प्रसिद्ध है, उसकी भी रचना प्राकृत में ही है । 'उप्पन्नेइ वा विगमेइ वा धुवेइ वा' प्राकृत भाषा में गद्य व पद्य में सैकड़ों ग्रंथों की रचना हुई जैसे - महावीरचरियं - श्री गुणचंद्रसूरिकृत - पद्यमय - ग्रंथप्रमाण 12000 श्लोक
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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