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________________ पाठ - 10 अकारान्त नाम सत्तमी विभक्ति तथा संबोहण प्रत्यय (३/११, ३८, ४, १२) पुंलिंग । __ एकवचन बहुवचन सत्तमी | ए, म्मि (सि) सु, सुं. संबोहण । ओ, आ, 0, (ए) आ. नपुंसकलिंग - पुंलिंगवत् 1. सि प्रत्यय लगने पर पूर्व के अक्षर पर अनुस्वार रखा जाता है | उदा. समणंसि (श्रमणे) घरंसि (गृह). 2. नपुंसकलिंग में संबोधन एकवचन में मूल रूप ही होता है तथा बहुवचन भी प्रैथमा आदि के रूपों के समान ही होते हैं | जिण (जिन) सत्तमी । जिणे, जिणम्मि, जिणंसि. जिणेसु, जिणेसुं. संबोहण - हे जिण, जिणो, जिणा, जिणे. | जिणा. नाण (ज्ञान) । नाणे, नाणम्मि, नाणंसि. | नाणेसु, नाणेसुं. संबोहण | हे नाण. नाणाइं, नाणाइँ, नाणाणि. 3. सर्वनाम के रूप-विस्तार से आगे कहेंगे लेकिन जिन रूपों में विशेष परिवर्तन नहीं है वे रूप यहाँ दिये जाते हैं । सर्वनाम शब्दों के रूप और प्रत्यय अकारान्त पुंलिंग और नपुंसकलिंग के समान हैं परन्तु प्रथमा बहवचन में ए प्रत्यय और सप्तमी एकवचन में स्सि, म्मि, त्थ, हिं प्रत्यय लगाये जाते हैं तथा षष्ठी बहुवचन में एसिं प्रत्यय विकल्प से लगाया जाता है । अपवाद :- इम (इदम्) और एअ (एतद्) सर्वनाम को सप्तमी एकवचन का हिं प्रत्यय नहीं लगता है । (३/५८, ५९, ६०, ६१) उदा. पढमा बहुव - सव्वे, छठी बहुव. - सव्वेसिं, सव्वाण, सव्वाणं, सत्तमी एकव. सव्वस्सि, सव्वम्मि, सव्वत्थ, सव्वहिं, सव्वंसि । सत्तमी । नागे - ४९
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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