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________________ जब लोप न हो तब विकल्प से संधि होती हैतमवि (तदपि) केणावि (केनापि) किमवि (किमपि) | देवा अवि - देवावि (देवा अपि). 11. विणा अव्यय के योग में दूसरी, तीसरी और पाँचवीं विभक्ति रखी जाती है | सह अव्यय और उस अर्थवाले दूसरे अव्यय जिस नाम के साथ जुड़ते हैं, वह नाम तीसरी विभक्ति में रखा जाता है। उदा. धम्मं विणा सुहं न लहेज्ज | नाणेण सह समणा सोहंते । 12. जिस अव्यय के अन्त में त्र हो तो उसके बदले हि-ह-त्थ होता है । (२/१६१) उदा. जहि, जह, जत्थ (यत्र)- कहि, कह, कत्थ (कुत्र) तहि, तह, तत्थ (तत्र) अन्नहि, अन्नह, अन्नत्थ (अन्यत्र) धातु अड्। (अ) अट् । भटकना, अग्घ (अर्घ) किंमत करना, आदर करना. पेक्ख् । (प्र + ईक्ष) देखना. पिक्ख् । खित् (क्षिप) फेंकना. जय (यत्) यत्न करना. छिंद् (छिन्द) छेदना. पीण् (प्रीण) खुश करना. धाव् ) (धाव) दौड़ना. धाय धा ) लह (लभ) प्राप्त करना. सोह (शोभ) शोभा देना. हिन्दी में अनुवाद करें1. जो एगं जाणेइ सो सव्वं जाणइ । 2. जो सव्वं जाणए सो एगं जाणेइ । 3. बुहा बुहे पिक्खन्ति किं मुरुक्खो ? 4: णाई करेमि रोसं। 5. धणं दाणेण सहलं होइ । 6. समणा मोक्खाय जएन्ते । 7. बहिरो किमवि न सुणेइ । 8. समणा नाणेण तवेण सीलेण य छज्जन्ते । सावगो अज्ज पंकएहिं जिणे अच्चेज्ज | 10. जणो कुढारेण कट्ठाइं छिंदइ । 11. पावो वहाइ जणं धाएइ । 12. आयरिआ सीसेहिं सह विहरेइरे । 13. उज्जमेण सिज्झंति कज्जाणि न मणोरहेहिं । 14. रोगा ओसढेण नस्संते । स - ४१
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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