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________________ एगूणनउय (एकोननवति) नवासीवाँ, 89 वाँ ( नवतितम) नब्बेवाँ, 90 वाँ नउइय } नवइयम एक्काणउ (एकनवति) इक्यानवेवाँ 91 वाँ एक्काणवय बाणउय (द्विनवति) बानवेवाँ, 92 वाँ तेणउय (त्रिनवति) तिरानवेवाँ 93 वाँ चउणउय (चतुर्नवति) चोरानवेवाँ, 94 वाँ पंचाणउय (पञ्चनवति) पिच्यानवेवाँ, 95 वाँ छन्नउय (षण्णवति) छियानवेवाँ, 96 वाँ सत्ताणउय (सप्तनवति) सत्तानवेवाँ, 97 वाँ अट्ठाणउय (अष्टनवति) अट्ठानरेवाँ 98 वाँ नवणउय ( नवनवतितम) निन्यानवेवाँ 99 वाँ नवणवइम सययम (शततम) सौवाँ 100 वाँ इस प्रकार एक्कुत्तरसय एक्कोत्तरसय, दुरूत्तरसय, तिउत्तरसय वगैरह संख्या से संख्यापूरक शब्द भी बनते हैं । 11. 'पढम' से 'तिइय' पर्यन्त संख्यापूरक शब्दों का स्त्रीलिंग आ लगाने से बनता है और शेष संख्यापूरक शब्दों का स्त्रीलिंग प्रायः अन्त्य अ का ई करने से बनता है | उदा. पढमा बीया-बिइया-तीया- तइया-चउत्थी - दसमी, एक्कारसीचउद्दसी-चउद्दसमी-सत्तावीसी-सत्तावीसमी-तीसइमी चालीसमी- एगसट्ठीबाक्त्तरी-एगासीइमी- छन्नउई इत्यादि । संख्यापूरक शब्द विशेषण होने से उनके रूप पुंलिंग में 'देव' के समान और स्त्रीलिंग में 'रमा' और 'इत्थी' के समान समझने चाहिए । वार अर्थ (आवृत्तिदर्शक क्रियाविशेषण) 12. संख्यावाचक शब्दों को 'हुत्त' (कृत्वस् ) प्रत्यय लगाने पर आवृत्तिदर्शक क्रियाविशेषण बनते हैं, तथा आर्ष प्राकृत में 'क्खुत्तो- खुत्तो' प्रत्यय भी लगाया जाता है । एग का सइ अथवा सइं भी होता है, द्वि का दु, त्रि का ति और चतुर् का चउ होता है । २३६
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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