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________________ सप्तमी - जिणोत्तमो, जिणुत्तमो (जिनोत्तमः ) = जिणेसु उत्तमो नाणोज्जओ, नाणुज्जओ (ज्ञानोद्यतः) = नाणम्मि उज्जओ कलाकुसलो (कलाकुशलः) = कलासु कुसलो नञ् तत्पुरुष निषेधवाचक अव्यय 'अ' अथवा 'अण' का नाम के साथ समास होता है । 10. शब्द के प्रारम्भ में व्यंजन हो तो 'अ' और स्वर हो तो 'अण' रखा जाता है । 9. उदा. अदेवो (अदेवः ) = न देवो अविरई (अविरतिः) = न विरई अणवज्जं (अनवद्यम् ) = न अवज्जं अणायारो (अनाचार :) = न आयारो 3. कम्मधारय (कर्मधारय) समास 11. विशेषणादि पूर्वपद का विशेष्यादि उत्तरपद के साथ समास होता है । 12 इस समास में अधिकतर दोनों पद समान विभक्ति में आते हैं, इसलिए यह समास समानाधिकरण ही होता है । उदा. विशेषण पूर्वपद - रत्तघडो (रक्तघट :) = रत्तो अ एसो घडो सुंदरपडिमा (सुन्दरप्रतिमा) सुन्दरा य एसा पडिमा परमपयं (परमपदम्) = परमं च एअं पयं च सेओ य विशेषणोभयपद रत्तसेओ आसो (रक्तश्वेतोऽश्वः) = स्तो अ एस सीउन्हं जलं (शीतोष्णं जलम् ) = सीअं च तं उण्हं च विशेष्यपूर्वपद- वीरजिणिदो (वीरजिनेन्द्रः) वीरो अ एसो जिणिंदो उपमानपूर्वपद - चंदाणणं (चन्द्राननम् ) = चंदो इव आणणं उपमानोत्तरपद - मुहचंदो (मुखचन्द्रः ) = मुहं चंदो व्व जिणचंदो (जिनचन्द्रः) = जिणो चंदु व्व अवधारणपूर्वपद - अन्नाणतिमिरं (अज्ञानतिमिरम्) = अन्नाणं चेअ तिमिरं नाणधणं (ज्ञानधनम् ) = नाणं चेअ धणं पयपउमं (पदपद्मम्) = पयमेव पउमं 4. दिगु ( द्विगु ) समास 13. कर्मधारय समास का प्रथम अवयव संख्यादर्शक हो तो द्विगु समास १९८
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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