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________________ नपुंसकलिंग 9. अन् अन्तवाले नामों के नपुंसकलिंग रूप अकारान्त नपुंसकलिंग (वण) जैसे बनते हैं और जो नाम विशेषण हैं उनके तृतीया विभक्ति से पुंलिंग के समान रूप बनते हैं । उदा. सम्म (शर्मन्) - कल्याण, सुख नपुंसकलिंग एकवचन बहुवचन पढमा / बीया सम्म __ सम्माइं, सम्माइँ, सम्माणि शेष रूप अकारान्त नपुंसकलिंग वत् । दाम (दामन्) - माला नपुंसकलिंग एकवचन बहुवचन पढमा / बीया दामं दामाइं, दामाइँ, दामाणि तइया दामेण-णं दामेहि-हिँहिं शेष रूप अकारान्त नपुंसकलिंग वत् । सुकम्म, सुकम्माण (सुकर्मन्) . नपुंसकलिंग | एकवचन | बहुवचन पढमा | बीया | सुकम्मं । सुकम्माइं, सुकम्माइँ, सुकम्माणि, सुकम्माणं | सुकम्माणाइं, सुकम्माणाइँ, सुकम्माणाणि __शेष रूप बम्ह, बम्हाण वत् । 10. मत्, वत् और अत् अन्तवाले शब्दों के रूप अन्त्य अत् का अन्त करने से अकारान्त शब्दों के समान ही बनते हैं । उदा. भगवंतो (भगवान्) पूज्य | अरिहंत (अर्हन्) अरिहंत धणवंतो (धनवान्) धनवान | कियंतो (कियान्) कितना सिरिमंतो (श्रीमान्) लक्ष्मीवान | भवंतो (भवान्) आप हिरिमंतो (ह्रीमान्) लज्जावान भविस्संतो (भविष्यन्) होता आर्ष प्राकृत में प्रथमा एकवचन में निम्नानुसार भी रूप बनते हैं । -१५९ 60
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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