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________________ 23. गायंता सज्झायं, झायंता धम्मझाणमकलंकं । जाणता मुणियव्वं, मुणिणो आवस्सए लग्गा ||8|| प्राकृत में अनुवाद करें 1. जंबूकुमार ने कुमार अवस्था में अपनी सब ऋद्धि का त्याग करके (च ) चारित्र ग्रहण किया (गिह) | 2. मैं शास्त्र पढ़ने के लिए (अहिज्ज्) गुरु के पास जाता हूँ । 3. गुरु प्रमाद करते ( पमज्ज) साधु को पढ़ने के लिए (पढ़) कहते हैं । 4. रात्रि के प्रथम प्रहर में सोकर (सुव) और अन्तिम प्रहर में जगकर (जग्ग) किया जानेवाला (कीर ) अभ्यास स्थिर बनता है । 5. मनुष्यों में सोनी, पक्षियों में कौआ और पशुओं में सियाल कपटी होता है । 6. पाठशाला में अध्ययन करती (कुण) कन्याओं को तुम इनाम दो । 7. मनुष्यों की आधि हरण करने का उपाय (हर) शास्त्रश्रवण से अतिरिक्त अन्य कोई नहीं है । 8. अग्नि द्वारा जलती (डज्झ ) स्त्री का उसने रक्षण किया ( रक्ख ) । 9. राम द्वारा कही जानेवाली (क) बात सुनकर (सुण) उसने वैराग्य प्राप्त किया । 10. जानने योग्य (जाण) भावों को तुम जानो ! 11. मूर्ख व्यक्ति ने अपना वस्त्र अग्नि में डाला (खि) और वह जल गया (डह्) । 12. साधुओं की सेवा द्वारा उसके दिन व्यतीत हुए ( वोलीण) 13. जीवों का वध करनेवाला और मांस का भक्षण करनेवाला (भक्ख) मनुष्य राक्षस कहलाता है । 14. वह गुरु के पास पापों की आलोचना लेने के लिए (गिण्ह) जाते हुए ( वच्च) शरमाता है । 15. वह समाधिपूर्वक मृत्यु पाकर (पाव) स्वर्ग में देव हुआ । 16. रोते (रुव्) बालक को तू हैरान मत कर । 17. हँसता हुआ बालक सब को प्रिय लगता है । 18. ग्रहण करने योग्य को " (गह-गिण्ह्) ग्रहण कर, त्याग करने योग्य का (च) त्याग कर । १५२
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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