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________________ रोत्तूण, रोत्तुआण (रुदित्वा) = रोकर | मोच्चा (मुक्त्वा) = खाकर भोत्तूण, भोत्तुआण (भुक्त्वा) = खाकर मोच्चा (मुक्त्वा) = छोड़कर मोत्तूण, मोत्तुआण (मुक्त्वा) = छोड़कर मच्चा (मत्वा) = विचारकर गन्तूण, गंतुआण (गत्वा) = जाकर | वंदित्ता (वंदित्वा) = वन्दन करके उठाए, उट्ठाय (उत्थाय) = उठकर | सुच्चा-सोच्चा (श्रुत्वा) = सुनकर गच्चा (गत्वा) = जाकर सुत्ता (सुप्त्वा) = सोकर णच्चा (ज्ञात्वा) = जानकर | साहट्ट (संहृत्य) = संकोचकर बुज्झा (बुद्ध्वा) = बोध पाकर 3. सम्बन्धक भूतकृदन्त के प्रत्ययसंबंधी ण का अनुस्वारसहित भी प्रयोग होता है | उदा. तूणं, ऊणं, तुआणं, उआणं = हसितूणं, हसिऊणं, हसितुआणं, हसिउआणं आदि । विशेषणरूप कृदन्त कर्मणि भूतकृदन्त 4. धातु के अंग को अ अथवा त प्रत्यय लगने पर कर्मणि भूतकृदन्त बनता है, इस प्रत्यय के लगने पर पूर्व के अ का इ होता है | यह कृदन्त विशेषण होने के कारण इसका स्त्रीलिंग 'आ' लगाने पर बनता है, इसके रूप आकारान्त स्त्रीलिंग के समान बनते हैं तथा पुंलिंग नपुंसकलिंग रूप अकारान्त पुंलिंग-नपुंसकलिंग के समान बनते हैं । उदा. पुंलिंग । नपुंसकलिंग स्त्रीलिंग सुण + अ = सुणिओ7 (श्रुतः) | सुणिअं) (श्रुतम्) | सुणिआ7 (श्रुता) सुण + त = सुणितो | सुणितं J | सुणिता । रामेण देसणा सुणिआ - राम द्वारा देशना सुनी गई । झा + अ = झाअं, झातं (ध्यातम्) ध्यान किया गया । हस + अ = हसिअं, हसितं (हसितम्) हँसाया । झाअ + अ = झाइअं, झाइतं (ध्यातम्) ध्यान किया गया । LSO -१४३
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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