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________________ 5. धातु अव-मन्न् (अव + मन्) = अवज्ञा करनी, दम् (दम्) = निग्रह करना अपमान करना |सं-प-मज्ज् (सं +प्र + मृज) = साफ अव-लंब (अव + लम्ब) = आश्रय लेना | करना, निर्मल करना उव-यर (उप + कृ) = उपकार करना हिंड् (हिण्ड्) = जाना, घूमना चव् (कथ) = बोलना पम्हस् (वि + स्म) = भूलना, विस्मरण होना हिन्दी में अनुवाद करें 1. जे भावा पुव्वण्हे दीसीअ, ते अवरण्हे न दीसन्ति । । 2. जह पवणस्स रउद्देहिं गुंजिएहिं मंदरो न कंपिज्जइ, तह खलाणं असब्भेहिं वयणेहि सज्जणाणं चित्ताइं न कंपीइरे । 3. धम्मेण सुहाणि लब्मन्ति, पावाइं च नस्संति । 4. समणोवासएहिं चेइएसु जिणंदाणं पडिमाओ अच्चिज्जीअ | विउसाणं परिसाए मुक्खेहिं मउणं सेवीअउ अन्नह मुक्खत्ति नज्जिहिन्ति । 6. देवेहिं सीयलेण सुहफासेण सुरहिणा मारुएण जोयणपरिमंडला भूमी सव्वओ समंता संपमज्जिज्जइ । 7. अग्गिणा नयरं डज्झीअ । 8. गुरूणं भत्तीए सत्थाणं तत्ताइं णविहिरे । 9. अज्ज वि अउज्झाए परिसरे उच्चेसु रुक्खेसु ठिएहिं जणेहिं निम्मले नहयले धवला सिहरपरंपरा तस्स गिरिणो दीसइ । 10. गुरूणमुवएसेण संसारो तीरइ । 11. भद्दे ! का तुमं देवि व्व दीससि ? ! 12. सहा केरिसी वुच्चए ? ! 13. जत्थ थेरा अत्थि सा सहा । 14. कलिम्मि अकाले मेहो वरिसेइ, काले न वरिसेज्ज, असाहू पूइज्जन्ति, साहवो न पूईइरे । 15. वेसाओ धणं चिय गिण्हन्ति, न ह धणेण ताओ घिप्पन्ति । 16. होइ गुरुयाणं गरुयं, वसणं लोयम्मि न उण इयराणं । जं ससिरविणो घेप्पंति, राहुणा न उण ताराओ ||1|| 17. जलणो वि घेप्पइ सुहं, पवणो भुयगो य केणइ नएण । महिलामणो न घेप्पइ, बहुएहिं नयसहस्सेहि ||2|| 18. पूइज्जति दयालू जइणो, न ह मच्छवहगाई । 19. को कस्स एत्थ जणओ, का माया बंधवो य को कस्स | कीरंति सकम्मेहिं, जीवा अन्नुन्नरूवेहिं ||3|| १३९ -
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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