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________________ कुछ कर्मणि और भावे रूपों का कोष्ठक धातु | वर्तमानकाल | विध्यर्थ-आज्ञार्थ | भूतकाल | भविष्यकाल | क्रियातिपत्त्यर्थ तृ.पु. तृ.पु. सर्वपु. तृ.पु. | सर्वपु. एकवचन | एकवचन सर्ववचन एकवचन | सर्ववचन दीस् दीसइ दीसउ दीसीअ | (नि.२ से) (नि.२ से) पासिहिइ | पासन्तो-न्ती-न्तं | पासेज्ज-ज्जा दीसन्तो-न्ती-न्तं दीसिहिइ |दीसेज्ज-ज्जा भण् भण्णइ भण्णउ | भण्णीअ |भणिहिइ भण्णन्तो-न्ती भणीअईअ |भण्णेज्ज-ज्जा भणीअइ भणीअउ | भणिज्जई भणिहिइ |भणेज्ज-ज्जा भणिज्जइ | भणिज्जउ |भणन्तो-न्ती-न्तं हस् हस्सइ हस्सउ हस्सीअ | हस्सिहिइ | हस्सन्तो-न्ती-न्तं हसीअईअ हस्सेज्ज-ज्जा हसीअइ | हसीअउ हसिज्जईअ हसिहिइ | हसन्तो-न्ती-न्तं हसिज्जइ | हसिज्जउ हसेज्ज-ज्जा थुण् थुव्वइ थुव्वउ थुव्वीअ थुविहिइ | थुव्वन्तो-न्ती-न्तं थुव्वेज्ज-ज्जा थुणीअइ थुणीअउ थुणीअईअ | थुणिहिइ थुणन्तो-न्ती-न्तं थुणिज्जई थुणेज्ज-ज्जा थुणिज्जइ | थणिज्जउ ने नेईअइ नेईअउ नेईअसी. | नेहिइ नेन्तो-न्ती-न्तं ही-हीअ नेइज्जइ | नेइज्जउ | नेइज्जसी नेज्ज-ज्जा ही-हीअ 9. शब्द में द्र संयुक्त व्यंजन हो तो द्र के र का विकल्प से लोप होता है । (२/८०) उदा. चन्दो, चंद्रो (चन्द्रः) । भद्दो, भद्रो (भद्रः) रुद्दो, रुद्रो (रुद्रः) । समुद्दो, समुद्रो (समुद्रः) १३६
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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