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________________ बालानामपि सद्बोधकारिणी कर्णपेशला। तथापि प्राकृता भाषा, न तेषामपि भासते ॥ बालजीवों को सुंदर सद्बोध करानेवाली और कर्णप्रिय प्राकृत भाषा हैं, फिर भी दुर्विदग्धों को पसंद नहीं पडती है। कोमलता :- प्राकृत काव्य में रही सुकोमलता-मृदुता कमलदल का भान कराती है । यायावरीय राजशेखर ने कर्पूरमंजरी सट्टक में लिखा है परुसो सक्कअबंधो, पाइअबंधो वि होइ सुउमारो। पुरिसाणं महिलाणं जेत्तियमिहंतरं तेत्तियमिमाणं ॥ संस्कृत रचना कठोर होती है, जबकि प्राकृत रचना सुकुमार अर्थात् कोमल होती है । कठोरता और सुकुमारता में जितना अंतर पुरुष और स्त्री के बीच है, उतना अंतर इन दो भाषाओं के बीच जानना चाहिये । लाटप्रियता :- लाटदेश के लोगों को प्राकृत भाषा पर अपूर्व प्रेम था । यायावरीय कवि राजशेखर काव्यादर्श में कहते हैं पठन्ति लटभं लाटाः प्राकृतं संस्कृतद्विषः । जिह्वया ललितोल्लाप-लब्ध सौन्दर्यमुद्रया ॥ भावार्थ :- संस्कृतद्वेषी लाटदेशवासी लोग ललित उल्लाप करने में सौंदर्य बिरुद को पाई जीभद्वारा सुंदर प्राकृत भाषा बोलते हैं | इससे सिद्ध होता है कि एक समय लाटदेश की विशिष्ट भाषा प्राकृत थी। उपसंहार :- उपरोक्त प्रमाणों से सुज्ञवाचक समझ गए होंगे कि सकलजनवल्लभ, अकृत्रिम, प्रकृतिवत्सल, स्वादु तथा आबालगोपाल, सुबोधकारिणी भाषा यदि कोई हो तो वह प्राकृत भाषा है। इस पवित्र आर्य देश की सबसे प्राचीन दो भाषाएं है - प्राकृत और संस्कृत । ये दो भाषाएं भारतवर्ष के
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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