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________________ प्राकृत कोष :- जन्म से ब्राह्मण होने पर भी सोच समझपूर्वक जैन धर्म का स्वीकार करनेवाले परमार्हत् महाकवि धनपाल विरचित पाइअलच्छी नाममाला तथा कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्यकृत 'देशी नाममाला' आदि प्राकृत शब्दों का सुंदर बोधवाले प्राकृत शब्दकोष है । प्राकृत छंद के ग्रंथ :- गाथा लक्षण, नंदिताढ्य, सअंभू छंद, प्राकृत पिंगल, विरहांक कविकृत छंदोविचित तथा श्री हेमचन्द्राचार्यकृत छंदोनुशासन आदि । प्राकृत में से अन्य भाषाओं का जन्म :- एक ही वर्षा का जल स्थान भेद से विविध भेदवाला बनता है, उसी प्रकार एक ही प्राकृत भाषा स्थान भेद से अनेक संस्कृत आदि विविध भाषा भेद प्राप्त करती है । कविराज वाक्पतिराज 'गउडवहो' नाम के प्राकृत काव्य में लिखते हैं 'सयलाओ इमं वाया विसंति एत्तो य णेंति वायाओ' एंति समुहं चिय, ति सायराओ च्चिय जलाई । भावार्थ :- सभी प्रकार का पानी समुद्र में प्रवेश करता है और समुद्र में से निकलता है, उसी प्रकार सभी वाणी (भाषाएँ) प्राकृत में प्रवेश करती है और प्राकृत में से निकलती है । 'यद् योनिः किल संस्कृतस्य' ये वचन बोलकर कवि राजशेखर कहते है- मैं विश्वासपूर्वक कहता हूँ कि प्राकृत भाषा, संस्कृत का उत्पत्तिस्थान है । कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्यजी भी स्वोपज्ञ काव्यानुशासन में जैनीवाणी की स्तुति करते हुए कहते है 'सर्वभाषा परिणतां जैनीं वाचमुपास्महे’- सभी भाषाओं में परिणाम पानेवाली जैनी वाणी
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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