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आओ संस्कृत सीखें
कृ
करवै
कुरुष्व
कुरुताम्
= करना
सन्
= दान करना
क्षण् = हिंसा करना
वर्तमान कृदन्त
तन्वत्, कुर्वत् के रूप तीनों काल में चिन्वत् की तरह होते है।
आत्मनेपद में तन्वानः, कुर्वाणः । कर्मणि प्रयोग में तन्यते, तन्यमानः कृ का क्रियते, क्रियमाण: आदि
आटोप = गर्व चक्रिन् = चक्रवर्ती
चाण्डाल = चांडाल
आविस्+कृ= प्रगट करना (उभयपदी) मन् = मानना
सुनु = पुत्र संपर्क = संबंध
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आज्ञार्थ
करवावहै
कुर्वाथाम्
कुर्वाताम्
निर्बलता = कमजोरी
अभिमत
= इष्ट
आलस्य = आलस्य
तपस् = तप
पार्श्व = पासमें
(पुंलिंग)
(पुंलिंग)
(पुंलिंग)
वत्स = बछडा
(पुंलिंग)
सुमति = पांचवे तीर्थंकर (पुंलिंग )
(पुंलिंग)
(पुंलिंग) (स्त्रीलिंग) ( नपुं. लिंग) ( नपुं. लिंग) ( नपुं. लिंग) ( नपुं. लिंग) |
आठवें गण के धातु
(उभयपदी ) | क्षिण् = हिंसा करना
(उभयपदी) वन् = मांगना
(उभयपदी)
करवामहै
कुरुध्वम्
कुर्वताम्
शब्दार्थ
दुष्कृत = पाप
लाम्पट्य = लंपटता
शर्मन् = सुख
सत्त्व = प्राणी
घोर = कठिन
दुर्मद = अतिशय मद
पर = तत्पर
(नपुं. लिंग)
( नपुं. लिंग)
( नपुं. लिंग)
(नपुं. लिंग)
(विशेषण)
(विशेषण)
(विशेषण)
प्रकट = प्रकृत
(विशेषण)
शरीरस्थ शरीर में रहा (विशेषण)
=
(विशेषण)
स्वामिन् शीघ्र = जल्दी
(विशेषण)
समम् = साथमें
(अव्यय)
(उभयपदी) (आत्मनेपदी) (आत्मनेपदी)
= नाथ