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________________ आओ संस्कृत सीखें कृ करवै कुरुष्व कुरुताम् = करना सन् = दान करना क्षण् = हिंसा करना वर्तमान कृदन्त तन्वत्, कुर्वत् के रूप तीनों काल में चिन्वत् की तरह होते है। आत्मनेपद में तन्वानः, कुर्वाणः । कर्मणि प्रयोग में तन्यते, तन्यमानः कृ का क्रियते, क्रियमाण: आदि आटोप = गर्व चक्रिन् = चक्रवर्ती चाण्डाल = चांडाल आविस्+कृ= प्रगट करना (उभयपदी) मन् = मानना सुनु = पुत्र संपर्क = संबंध 36 आज्ञार्थ करवावहै कुर्वाथाम् कुर्वाताम् निर्बलता = कमजोरी अभिमत = इष्ट आलस्य = आलस्य तपस् = तप पार्श्व = पासमें (पुंलिंग) (पुंलिंग) (पुंलिंग) वत्स = बछडा (पुंलिंग) सुमति = पांचवे तीर्थंकर (पुंलिंग ) (पुंलिंग) (पुंलिंग) (स्त्रीलिंग) ( नपुं. लिंग) ( नपुं. लिंग) ( नपुं. लिंग) ( नपुं. लिंग) | आठवें गण के धातु (उभयपदी ) | क्षिण् = हिंसा करना (उभयपदी) वन् = मांगना (उभयपदी) करवामहै कुरुध्वम् कुर्वताम् शब्दार्थ दुष्कृत = पाप लाम्पट्य = लंपटता शर्मन् = सुख सत्त्व = प्राणी घोर = कठिन दुर्मद = अतिशय मद पर = तत्पर (नपुं. लिंग) ( नपुं. लिंग) ( नपुं. लिंग) (नपुं. लिंग) (विशेषण) (विशेषण) (विशेषण) प्रकट = प्रकृत (विशेषण) शरीरस्थ शरीर में रहा (विशेषण) = (विशेषण) स्वामिन् शीघ्र = जल्दी (विशेषण) समम् = साथमें (अव्यय) (उभयपदी) (आत्मनेपदी) (आत्मनेपदी) = नाथ
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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