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________________ आओ संस्कृत सीखें 22 - पाठ - 6 कर्मणि - भावे प्रयोग 1. य (क्य) प्रत्यय पर धातु का अंत्यस्वर दीर्घ होता है। उदा. जि + य (क्य) + ते = जीयते । 2. गा, पा (पीना) स्था, सा, दा (दा संज्ञावाले धातु) मा, हा (त्याग करना) इन धातुओं के अंत्य स्वर आ का व्यंजनादि कित् प्रत्यय पर ई होता है परंतु त्वा का य हो तब ई नहीं होता है। उदा. गा = गीयते, गीतः, गीतवान्, गीत्वा । पा = पीयते, पीतः, पीतवान्, पीत्वा । परंतु प्रगाय यहाँ त्वा का य नहीं होने से ई नहीं हुआ । 3. खन्, सन् और जन् धातु के न् का धुट् व्यंजनादि कित् प्रत्यय पर आ होता है, परंतु य कित् पर विकल्प से आ होता है। उदा. खन् + त = खातः, सातः, जातः । खायते, खन्यते, सायते, सन्यते, जायते, जन्यते । 4. धातु के अंत्य ऋ के पहले संयोग हो तो ऐसे धातु के ऋ का तथा ऋ धातु के ऋ का य (क्य) प्रत्यय पर गुण होता है। स्मृ = स्मर्यते ऋ = अर्यते 5. कित् प्रत्यय पर पहले गण के यज् आदि (यज्, व्ये, वे, वे, वप्, वह्, श्वि, वद्, वस्) तथा वच् (गण 2) धातुओं के स्वर सहित अंतस्था का इ, उ तथा ऋ (ट्वृत्) होता है। य का इ, व का उ तथा र का ऋ होता है, इसे संप्रसारण भी कहते हैं। उदा. यज् = इज्यते वच् = उच्यते वप् = उप्यते व्ये = वीयते वह् = उह्यते वे = ऊयते वद् = उद्यते । = हूयते वस् = उष्यते श्वि = शूयते
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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