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________________ आओ संस्कृत सीखें 2296, 2. तपोऽग्नौ कर्मसमिधं जुहुधि । ---. . 3. ते भयान्न बिभ्यति धैर्यं च न जहति । . 4. वयं मदिरा - पानमजहीम । 5. तेऽसत्यं ब्रुवन्तो न जिह्रियति । - पाठ 15 संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद 1. आश्चर्यचकित दृष्टिवाले नगरजनों के द्वारा अनेक प्रकार से अभिनंदन कराता हुआ वह राजा अत्यंत खुश हुआ। 2. हे महात्मा ! सर्व शक्ति से तुम आत्मा की रक्षा करो । 3. किसी के साथ सज्जन मनुष्य विरोध नहीं करता है। 4. नहीं दिया हुआ तृण जितना भी धन कदापि लेना नहीं। 5. जो वास्तव में थोड़ा खाता हैं, वह बहुत खाता है । 6. वास्तव में जो मनुष्य अपात्र को अमृत जैसा सत्ज्ञान देता है, वह मनुष्य सज्जनों के बीच हँसी का पात्र बनता है और अनर्थ का मूल बनता है । 7. चलने वाले मनुष्य से कहीं पर प्रमादवश भूल होती ही है, वहाँ दुर्जन हँसते हैं और सज्जन समाधान करते हैं । 8. बड़ों को मारकर और छोटों को भी कपट से ठगकर जो राज्य ग्रहण होता है, वह बड़ा भी (राज्य) मुझे न मिले । हे पृथ्वी देवी ! प्रसन्न हो, फुटकर जगह दो । आकाश से भी गिरनेवाले को पृथ्वी ही शरण है। 10. जैसे मूर्ख मनुष्य बोर के बदले में चिंतामणि दे देता है, उसी प्रकार अति खेद की बात है कि मनुष्य जन रंजन के द्वारा सद्धर्म को छोड़ देता है। 11. ज्ञानमग्न को जो सुख होता है, उसे कहना अशक्य है। प्रिया के आलिंगन के साथ तुलना की जाए वैसा नहीं है और चन्दन के विलेपन के साथ भी तुलना की जाए वैसा नहीं है। 12. दान, भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं, जो देता नहीं और खाता भी नहीं, उसके धन की तीसरी गति (नाश) होती है। 13. सत्पुरुषों का अलंकार कौन सा? शील ! लेकिन सोने से बना हुआ नहीं। प्रयत्न से ग्रहण करने योग्य क्या? धर्म, लेकिन धन आदि नहीं ।
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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