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________________ आओ संस्कृत सीखें 2. पूर्वं स्नातः पश्चाद् अनुलिप्तः = स्नातानुलिप्तः । छिन्नप्ररुढो वृक्षः । पूर्वं छिन्नः पश्चाद् प्ररूढः = किंराजा । 3. को (कुत्सितः) राजा 246 कः (कुत्सितः) सखा - किंसखा । कः (कुत्सितः) पुरुषः - किंपुरुषः । द्विगु कर्मधारय - समाहार द्विगु 20. संख्यावाचक नाम, दूसरे नाम के साथ समाहार के अर्थ में समाहार द्विगु समास होता है । (समाहार द्विगु नपुंसक लिंग में है, कभी स्त्री लिंग में भी होता है) उदा. 1 त्रयाणाम् भुवनानाम् समाहारः == त्रिभुवनम् । पञ्चानां कुमारीणां समाहारः = पञ्चकुमारि । पञ्चानां शतानां समाहारः = पञ्चशती । इसी प्रकार अष्टसहस्री । त्रयाणां लोकानां समाहारः = त्रिलोकी | उपमान सामान्य धर्म कर्मधारय 21. उपमानवाचि नाम सामान्य धर्मवाचि नाम के साथ कर्मधारय समास होता है 1 उदा. मेघ इव श्यामः = मेघश्यामः, व्याघ्रशूरः । मृगीव (मृगीवत्) चपला = मृगचपला । उपमान कर्मधारय उपमेय -- 22. उपमेयवाचि नाम, उपमान वाचि व्याघ्र आदि शब्दों के साथ समास होता है, परंतु दोनों के सामान्य धर्म को कहना हो तो समास नही होता है। पुरुष: व्याघ्र इव पुरुषव्याघ्रः । = इसी तरह नरसिंहः । सिंह जैसा नर मुखं चन्द्र इव = पादः पद्मम् इव = पादपद्मम् । परंतु - पुरुष: व्याघ्र इव शूरः यहाँ समास नहीं होगा, क्योंकि दोनों के सामान्य धर्म ( शूरः) का कथन है । मुखचन्द्रः । चंद्र जैसा मुँह मयूरव्यंसकादि तत्पुरुष 1. व्यंसकश्चासौ मयूरश्च = मयूरव्यंसकः । ठगनेवाला मोर । 1
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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