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________________ आओ संस्कृत सीखें 2191 राघव = राम (पुंलिंग)| अम्बर = आकाश (नपुं. लिंग) विद्याधर = विद्याधर (पुंलिंग)| ख = आकाश (नपुं. लिंग) विप्लव = नाश (पुंलिंग)| तूर्य = वाद्ययंत्र (नपुं. लिंग) व्याध = शिकारी (पुंलिंग)| सारथ्य = सारथीपना (नपुं. लिंग) सौमित्रि = लक्ष्मण (पुंलिंग)| आहत = मरा हुआ (विशेषण) स्यन्दन = रथ (पुंलिंग)| आहत = लाया हुआ (विशेषण) उपविद्या =नजदीक की विद्या(स्त्रीलिंग) कष्ट = कष्टकारी (विशेषण) चेटी = दासी (स्त्री लिंग)| दुर्धर = कठिनाई से अधीन हो ऐसा (विशे.) दशा = हालत (स्त्री लिंग)| निरवशेष = संपूर्ण (विशेषण) सन्धा = प्रतिज्ञा (स्त्री लिंग)| भूरि = ज्यादा (विशेषण) अंशुक = कपड़ा (नपुं. लिंग) | शारद = शरद ऋतु संबंधी अधीन = आधीन (नपुं. लिंग)। संस्कृत में अनुवाद करो 1. दीक्षा ग्रहण करने के लिए राजा दशरथ ने रानी पुत्र और अमात्यों को पूछा (आ+प्रच्छ्) 2. नमस्कार करके भरत बोला (भाष्), 'हे प्रभो ! मैं आपके साथ दीक्षा लूंगा । (उप+आ+दा) उसे सुनकर कैकेयी ने 'मेरे पति और पुत्र निश्चितरूप से नहीं रहेंगे - इस प्रकार विचार किया (ध्यै) और बोली (वच्) हे स्वामी ! आप को याद है? (स्मरसि) आपने स्वेच्छा से मुझे वरदान दिया था।' (दा) - वह वरदान मुझे दो' । दशरथ ने कहा, (कथ्) 'मुझे याद है (स्मरामि) व्रतनिषेध को छोडकर जो मेरे हाथों में है, वह मांगो'। कैकेयी ने मांगा यदि आप दीक्षा लेते हो तो यह पृथ्वी (राज्य) भरत को प्रदान करो।' 'आज ही यह भूमि (राज्य) भरत द्वारा ग्रहण की जाय' - इस प्रकार उसे कहकर (अभिधाय) राजा दशरथ ने लक्ष्मण सहित राम को बुलाया (आ + ।) और कहा (अभि+धा) इसके सारथीपने से संतुष्ट होकर पहले मैंने इसे वरदान दिया था (अ) । वह वरदान कैकेयी द्वारा आज मांगा गया कि यह पृथ्वी भरत को दो।'
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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