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________________ आओ संस्कृत सीखें 2146 निभ = समान (विशेषण) निर्विण्ण = कंटाला हुआ (विशेषण) सुधी = विद्वान् (विशेषण) संनिभ = समान (विशेषण) धातु ईर्घ्य = ईर्ष्या करना गण १ (परस्मैपदी) _= जाना गण १ (आत्मनेपदी) लस् = आसक्त होना गण १ (परस्मैपदी) उद् + लस् = उल्लास पाना, (परस्मैपदी) संस्कृत में अनुवाद करो 1. दरिद्र लोगों (खलपू) की स्त्रियाँ जौ खरीदनेवाली होती हैं । (यव क्री) 2. राजा की रानियाँ अपने महल को छोडकर अन्य मार्ग या उन्मार्ग को नहीं जानती है, अत: कूपमंडूकी (कूपवर्षाभू) होती हैं । 3. सौंदर्य द्वारा जिसने काम को हल्का किया है, ऐसे (सौन्दर्य तर्जितस्मरम्) उसे देखकर स्त्रियों की भौएं उल्लसित हो जाती हैं (उल्लस्) । 4. दास की तरह (खलपू - चतुर्थ विभक्ति) बडी ऋद्धिवालों के ऊपर (ग्रामणी) यह राजा नि:स्पृही है और ईर्ष्या नहीं करता है (ईj)। 5. जैसे धन की इच्छा से कोई दरिद्र (खलपू) को नहीं चाहता है, उसी प्रकार यह राजा धन की इच्छा से गाँव के नेता (ग्रामणी) को भी नहीं चाहता है । 6. सेना का नायक, गाँव के नायक में स्नेह रखता है (स्नेह) । 7. लक्ष्मी पाने के लिए (श्री) मनुष्य दौड़ते हैं, परंतु बुद्धि पाने के लिए नहीं दौड़ते हैं (प्र+यत्)। 8. 'लक्ष्मी (श्री) या स्त्री कोई अपना नहीं है' - ऐसा, तत्त्व को जाननेवाले (तत्त्वविद्) कहते हैं। हिन्दी में अनुवाद करो 1. शरत्कालवशादिन्दुकराः स्युरधिकश्रियः । 2. बलिनो यद्दलिभ्योऽपि बहुरत्ना भूरियम् । 3. किं हि दुःसाध्यं सुधियां धियः ।
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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