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________________ आओ संस्कृत सीखें 131 ___ धातु ईक्ष् = देखना (गण 1 आत्मनेपदी) प्रति + राह देखना, उप+ उपेक्षा करना । गद् = बोलना (गण 1 परस्मैपदी) लग = लगना (गण 1 परस्मैपदी) बुध् = बोध पाना (गण 1 उभयपदी) मंत्र = मंत्रणा करना (गण 10 आत्मनेपदी) आ + आमंत्रण देना । मार्ग = मांगना (गण 10) ल = पार करना (गण 10 परस्मैपदी) संस्कृत में अनुवाद करो 1. मैं कल अहमदाबाद जानेवाला हूँ, परंतु बरसात बरसेगी तो मेरे से जाया नहीं जाएगा (शक्) । 2. यदि तुमने मेरे कहे हित वचन को माना होता तो तुम इस दःख के खड्डे में नहीं गिरते । 3. जो यह पूर्णिमा आनेवाली है, उस समय चैत्य में महोत्सव होगा (प्र+वृत्) । 4. हम जीवन पर्यंत पढ़ेंगे और तत्त्वों को जानेंगे (बुध्)। 5. आज अथवा कल हम उन लुटेरों को अवश्य पकड़ लेंगे (ग्रह) । 6. राम वन में जाएगा (इ) तो मैं उसके पीछे जाऊंगा (अनु+इ) वास्तव में राम के बिना लक्ष्मण रहने के लिए समर्थ नहीं है । 7. जिस प्रकार खिला हुआ फूल कुछ समय बाद मुझ जाता है, उसी प्रकार यह यौवन भी थोड़े समय में मुझ जाएगा (म्लै)। 8. जिस प्रकार उदित सूर्य अस्त हो जाता है उसी प्रकार यह जीवन भी एक दिन अस्त हो जाएगा। 9. इस मार्ग में बहत काँटे हैं, अत: वे इस मार्ग से जाने का प्रयत्न नहीं करेंगे । 10. मेरे बिना राम कैसे जीएंगे और उनके बिना मैं कैसे जीऊंगी। 11. यदि उसने समरादित्य कथा सुनी होती तो उसका मन अवश्य ही वैराग्यवाला बनता। 12. शिशुपाल को वरनेवाली (वृ-भविष्यकृदन्त) रुक्मिणी कन्या कृष्ण वासुदेव के द्वारा वरी गई। 13. बंदर को ठंडी से कंपते हुए देखकर सुगरी ने कहा, 'हे बंदर, यदि तुमने मेरी तरह घर बनाया होता तो तुं इस तरह ठंडी से नहीं कंपता ।
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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