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________________ मंत्रीश्वर वस्तुपाल-तेजपाल ने भी संस्कृत भाषा सीखकर आदिनाथ आदि के चरित्र संस्कृत भाषा में रचे थे। अपना दुर्भाग्य है कि पूर्वाचार्यों के द्वारा विरचित ग्रंथ हमारे लिए दुर्बोध होते जा रहे हैं वि.सं. 2064 में मेरा चातुर्मास कल्याण में था। जोधपुर (राज.) से 16 वर्षीय जिज्ञासु अक्षय वंदनार्थ आया। बात ही बात में मैंने उसे कहा, “जैन दर्शन के मर्म को अच्छी तरह से जाननासमझना हो तो महापुरुषों के द्वारा रचे गए संस्कृत-प्राकृत ग्रंथों का अभ्यास जरूरी है।" __उसने कहा, “मुझे संस्कृत नहीं आती है।” मैंने कहा- “तुम्हें संस्कृत भाषा सीखनी चाहिए। संस्कृत भाषा सीख लोगे तो उन ग्रंथों का रसास्वाद न कर सकोगे।" उसने कहा- “संस्कृत भाषा कैसे सीखू?" मैंने कहा- संस्कृत सीखने के लिए सिद्धहेमचन्द्र शब्दानुशासनम् पर आधारित हेम संस्कृत प्रवेशिका भाग-१-२ का अभ्यास करना चाहिए, जो गुजराती में है। उसने कहा, “मुझे गुजराती आती नहीं है, आप हिन्दी में तैयार करें।" मैंने कहा- “तुम्हारी भावना ध्यान में रखूगा।” उसकी भावना को ध्यान में रखकर उन संस्कृत पुस्तकों के हिन्दी अनुवाद का कार्य प्रारंभ किया, जो आज पूर्ण हो रहा है। _ वि.सं. 1193 में गुजरात के महाराजा सिद्धराज जयसिंह ने कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्राचार्यजी भगवंत को संस्कृत-व्याकरण रचने के लिए विनंती की थी । बुद्धिनिधान हेमचंद्रसूरिजी म. ने एक वर्ष की अल्पावधि में लघुवृत्ति, बृहद्वृत्ति और बृहन्न्यास युक्त 'सिद्धहेम शब्दानुशासनम्' व्याकरण की रचना की थी। 18 देशों के अधिपति सम्राट् कुमारपाल महाराजा ने भी इस व्याकरण का अभ्यास कर संस्कृत भाषा पर प्रभुत्व प्राप्त किया था। इसी व्याकरण को सरलता से समझने के लिए उपाध्याय श्री मेघविजयजी म. ने
SR No.023123
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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