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________________ आओ संस्कृत सीखें 11. चिंता शरीर को जलाती है, और क्षमा पोषण करती है । 12. वह बाला यमुना की ओर जाती है । 13. क्षमा वीरों का भूषण है । पाठ - 21 हिन्दी का संस्कृत अनुवाद 150 1. याचका धनिकं प्रार्थयन्ते । 2. मोहनलालोऽध्ययनात् पराजयते । 3. चिमनलालो गोधूमेभ्यः प्रति तण्डुलान् प्रयच्छति । 4. रतिलालः पापाद्विरमति । 5. अद्य नृपः प्रतिष्ठते । 6. शिष्या आचार्यमनुरुध्यन्ते । 7. कारणं विना कार्यं न भवति । 8. देवो विजयते । संस्कृत का हिन्दी अनुवाद 1. उद्यम से ही कार्य सिद्ध होते हैं, मनोरथ द्वारा नहीं, सचमुच सिंह के मुँह में हिरण प्रवेश नहीं करते हैं । 2. लोभ से क्रोध उत्पन्न होता है, लोभ से काम उत्पन्न होता है, लोभ से मोह और नाश होता है, लोभ पाप का कारण है । 3. आचार्य सौराष्ट्र में विहार करते हैं । 4. धर्म से सुख है और पाप से दुःख है । 5. देवदत्त दुःख का अहसास करता है । 6. भोगीलाल गाँव से आता है । 7. सज्जन पाप का त्याग करते हैं । 8. विद्या विनय से शोभती है । सोये हुए
SR No.023123
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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