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________________ 97 आओ संस्कृत सीखें उदा. कृतं तेन । उसके बिना चलेगा। शब्दार्थ अपराध = गुनाह (पुंलिंग) यद् = जो (अव्यय) कौन्तेय = कुंती का पुत्र (पुंलिंग) पराङ्मुख = विपरीत मुखवाला (विशे.) गोप = ग्वाला (पुंलिंग) तृषित = प्यासा (विशेषण) जिनेन्द्र = जिनेश्वर देव (पुंलिंग) दीन = गरीब (विशेषण) वर्धमान = महावीर स्वामी (पुंलिंग) दुःखित = दुःखी (विशेषण) अंबा = माता (स्त्री लिंग) नीरुज = रोग रहित (विशेषण) आङ्ग्ल भाषा=अंग्रेजी भाषा(स्त्रीलिंग) रूप = वर्ण (नपुं.) शांति = शांति (स्त्री लिंग) शिव = कल्याण (नपुं.) अतस् = यहाँ से (अव्यय) समीप = पास में (नपुं.) पुरस् = आगे, सामने (अव्यय) सर्वजगत् = संपूर्ण जगत् (नपुं.) मा = नहीं (अव्यय) धातुएँ भृ = पोषण करना (गण 1 उभयपदी) क्षम् (क्षाम) = क्षमा करना, माफ करना (गण 4, परस्मैपदी) अप् = प्रदान करना (गण 10 परस्मैपदी) मृग = शोध करना (गण 10 आत्मनेपदी) संस्कृत में अनुवाद करो 1. देवदत्त ! यहाँ से जा, खड़ा मत रह । 2. मनुष्यो ! सत्य बोलो, लोभ छोड़ो । 3. भूखे को भोजन दो और प्यासे को पानी दो । 4. यदि कीर्ति चाहते हो तो गरीबों की आपत्ति दूर करो । 5. छात्रों द्वारा विद्या प्राप्त की जाए । 6. मैं देवालय में जाऊँ और देव की पूजा करूँ । 7. सभी जगह लोग शांति प्राप्त करें | 8. हमारे द्वारा शत्रुओं के अपराध माफ किए जाँय । ST
SR No.023123
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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