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________________ आओ संस्कृत सीखें = बाण (पुं.) इषु: ऋषभ = ऋषभदेव (पुं.) गोप = ग्वाला (पुं.) जलनिधि = समुद्र (पुं.) नल = नलराजा (पुं.) निधि = भंडार (पुं.) मेरु = मेरु पर्वत (पुं.) लोक = लोग, जगत् (पुं.) विवाद शत्रु = दुश्मन (पुं.) खेद (पुं.) झगडा कृपण = लोभी (विशेषण) = खरु = कठिन (विशेषण) खल = दुर्जन (विशेषण) क्रिया = क्रिया (स्त्री) देवता = देवता (स्त्री) रथ्या = मोहल्ला (स्त्री) 83 शब्दार्थ शांता = स्त्री का नाम (स्त्री) अंबु = पानी (नपुंसक) तीर = किनारा ( नपुं.) परिपीडन = दुःख (नपुं.) प्रवहण = जहाज (नपुं.) अधुना = अभी (अव्यय) अन्यत्र = दूसरी जगह (अव्यय) किम् = क्या (अव्यय) दिवा = दिन में (अव्यय) वृथा = व्यर्थ (अव्यय) पाण्डु = पीला (विशेषण) जात = जन्मा हुआ (जन् + त) भूत कृदंत विपरीत = उल्टा (विशेषण) पर = दूसरा (सर्वनाम). गृहीत्वा = ग्रहण करके (भूत कृदंत) धातुएं तृप् = खुश होना - ( गण 4 परस्मैपदी) ध्यै (ध्याय) = ध्यान करना (गण 1 परस्मैपदी) प्र + सृ = फैलना (गण 1 परस्मैपदी ) संस्कृत में अनुवाद करो 1. कवियों के काव्य उनकी कीर्ति के लिए होते हैं । 2. ज्ञान और क्रिया द्वारा मुनि मुक्ति प्राप्त करते हैं । 3. मुनि रात्रि में श्री महावीर का ध्यान करते हैं । 4. धर्म मनुष्य को दुर्गति से बचाता है । 5. सरला ऋषभदेव को वंदन करती है । 6. इस नदी का पानी बहुत मीठा है । 7. बहुएँ सास को विनय से नमन करती हैं ।
SR No.023123
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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